नई दिल्ली, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का गुरुवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने 80 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। सीपीआई(एम) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने उनके निधन की जानकारी साझा की है।
बुद्धदेव की निधन की खबर उनके बेटे सुचेतन भट्टाचार्य ने गुरुवार सुबह दी। उनके निधन से पूरे बंगाल में शोक का लहर है। बंगाल में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर शोक जताया।
जानकारी के मुताबिक, बुद्धदेव ने सुबह नाश्ता भी किया था। इसके बाद वे अस्वस्थ हुए। सुबह करीब 8.20 बजे पाम एवेन्यू स्थित घर पर ही उन्होंने देह त्याग दिया। खबर मिलने के बाद उनके परिजन और राजनीतिक लोग एकत्रित होने शुरू हो गए। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि बुधवार शाम से ही उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। बुद्धदेव को सांस लेने में तकलीफ चरम सीमा पर पहुंच गई। फिर थोड़ी देर में उनकी स्थिति थोड़ी ठीक हुई।
फिर तय हुआ कि गुरुवार सुबह 11 बजे डॉक्टर आकर उनकी जांच करेंगे। जरूरत पड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा, क्योंकि वह अस्पताल जाने में बहुत अनिच्छुक थे। इसलिए डॉक्टरों की सलाह पर विचार किया जाएगा, लेकिन गुरुवार की सुबह से बुद्धदेव फिर बीमार पड़ गए। सुबह उठकर नाश्ते के बाद चाय पी। इसके बाद वह दोबारा बीमार पड़ गए और उन्हें नेबुलाइजर देने की कोशिश की गई। सूत्रों के मुताबिक, इस वक्त वह दिल की बीमारी से पीड़ित थे। तुरंत डॉक्टरों को सूचित किया गया। उन्होंने आकर बुद्धदेव को मृत घोषित कर दिया।
माकपा के पोलितब्यूरो के सदस्य भी रह चुके
बुद्धदेव भट्टाचार्य कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के पोलितब्यूरो के सदस्य भी रह चुके थे। बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म एक मार्च 1944 को उत्तरी कोलकाता में हुआ था। उनके पुरखों का घर बांग्लादेश में है। उन्होंने कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य की पढ़ाई की थी और बंगाली (ऑनर्स) में बीए की डिग्री प्राप्त की थी। बाद में वह सीपीआई (एम) से जुड़ गए थे। उन्हें सीपीआई की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव बनाया गया थे, जिसका बाद में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया में विलय हो गया था।
बंगाल में की थी औद्योगीकरण अभियान की शुरुआत
एक समय तक पश्चिम बंगाल की आय का प्राथमिक साधन कृषि थी, लेकिन बुद्धदेव ने इस स्थिति को बदलने के लिए अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जोखिम उठाते हुए औद्योगीकरण अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने बंगाल में फैक्टरियों की स्थापना हेतु विदेशी और राष्ट्रीय पूंजी को आमंत्रित किया। इनमें से दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो भी शामिल रही, जिसका उत्पादन प्लांट कोलकाता के पास स्थित सिंगुर में स्थापित किया गया था।
2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी से हारे
इसके अलावा उनकी योजना राज्य में अन्य बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत करने की भी थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर विरोध के चलते वह सफल नहीं हो सके और 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 2011 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार मनीष गुप्ता के हाथों मात मिली थी। तब मनीष गुप्ता ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को 16,684 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी।