लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फर्जीवाड़ा कर बिल्डर को गोमती नदी की 200 करोड़ की जमीन देने के मामले में तहसील व एलडीए के कई अफसर ईडी की जांच के दायरे में आ गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के असिसटेंट डायरेक्टर जयकुमार ठाकुर ने घोटाले की जांच शुरू कर दी है।
उन्होंने आठ नवम्बर को पत्र भेजकर मामले में तहसील व एलडीए से घोटाले से जुड़े दस्तावेज तलब किए हैं। उन अधिकारियों के नाम भी मांगे हैं जिन्होंने घोटाले को अंजाम दिया। ईडी का पत्र आने के बाद प्रशासन व एलडीए में हड़कम्प मच गया है। ईडी पत्र में साफ लिखा है कि मामले में तत्काल कार्रवाई की जानी है। इसलिए केस से जुड़े दस्तावेज अतिशीघ्र उपलब्ध कराए जाएं।
गोमती नदी की जमीन को लेकर फर्जीवाड़े का खेल वर्ष 2006 में ही शुरू हो गया था। लेकिन अंजाम वर्ष 2015 में दिया गया। बिल्डर राजगंगा डेवलपर को जमीन देने में घोटाला किया गया। इस घोटाले में तहसील सदर के तत्कालीन तहसीलदार व नायब तहसीलदार ने बड़ी भूमिका निभाई। 18 नवम्बर 2006 को तत्कालीन सदर तहसीलदार, चिनहट क्षेत्र के नायब तहसीलदार व राजस्व कर्मियों ने भौतिक सत्यापन कर एलडीए को एक रिपोर्ट भेजी थी। जिसमें खसरा संख्या 673 क की जमीन को नदी से बाहर दिखाया था। रिपोर्ट में सदर तहसील के अधिकारियों ने लिखा कि उक्त खसरे की जमीन नदी के सम्पर्क में नहीं है।
तहसील की रिपोर्ट के बाद एलडीए के तत्कालीन सहायक अभियंता भूपेंद्रवीर सिंह ने प्राधिकरण के अमीन अरविन्द श्रीवास्तव, श्रीराम प्रताप, नायब तहसीलदार शरदपाल के साथ स्थल का निरीक्षण किया तो उक्त भूमि नदी के बीच में मिली। नदी के बीच में होने से यह जमीन प्राधिकरण के किसी काम की नहीं थी। सहायक अभियन्ता ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा भी कि जमीन प्राधिकरण के उपयोग की नहीं है। ऐसे में इसके समायोजन का कोई औचित्य नहीं है। सहायक अभियन्ता की रिपोर्ट पर फाइल बंद हो जानी चाहिए थी। जो नहीं हुई।
वर्ष 2014 में फिर इसकी फाइल खोल दी गयी। राजगंगा डेवलपर्स ने नदी के बीच की यह जमीन महादेव प्रसाद से खरीदी दिखायी। जमीन नदी के बीच में होने से बिल्डर उसमें कुछ कर नहीं पा रहा था। इसीलिए एलडीए को यह जमीन देकर उससे दूसरी अच्छी जमीन लेने में लगा था। इसके लिए अदला बदली का प्रस्ताव बना। वर्ष 2015 में एलडीए के तत्कालीन अधिकारियों ने नदी के बीच की जमीन खुद ले ली और बिल्डर को उसकी जगह उसे गोमतीनगर विस्तार में प्राइम लोकेशन के पांच व्यावसायिक भूखण्ड दे दिए। अधिकारियों ने इन भूखण्डों की रजिस्ट्री भी वर्ष 2015 में बिल्डर के नाम कर दी।
वर्ष 2014-2015 में दोबारा जब इस घोटाले को अंजाम देने का काम शुरू हुआ तो सहायक अभियन्ता भूपेन्द्रवीर सिंह की वह रिपोर्ट आंड़े आ रही थी जिसमें साफ लिखा था जमीन नदी के बीच में है। इसकी काट के लिए फिर से तहसीलदार, नायब तहसीलदार से रिपोर्ट लगवायी गयी। रिपोर्ट में फिर लिखवाया गया कि जमीन नदी से बाहर है। जिसके बाद एलडीए ने नदी की जमीन खुद ले ली और बिल्डर को प्राइम लोकेशन पर पांच व्यावसायिक भूखण्ड दे दिए। सितम्बर 2023 में इस घोटाले का खुलासा हुआ। तत्कालीन उपाध्यक्ष इन्द्रमणि त्रिपाठी ने तत्कालीन सचिव पवन गंगवार से जांच करायी। जांच में फिर खुलासा हुआ कि जो जमीन बिल्डर से ली गयी वह तो आज भी नदी में ही है। उसे बाहर दिखाकर बिल्डर को पांच व्यावसायिक भूखण्ड देकर घोटाला किया गया। इसका आवंटन निरस्त किया गया लेकिन रजिस्ट्री हो जाने की वजह से बिल्डर पर कोई आंच नहीं आयी।
ईडी ने जांच शुरू करने का पत्र आठ नवम्बर 2024 को जारी किया है। ईडी ने राजगंगा ग्रुप आफ कम्पनीज तथा उसके निदेशक व डेवलपर्स अशोक कुमार अग्रवाल, मनीष अग्रवाल तथा अन्य का पूरा विवरण मांगा है। उसने जमीन के एलाटमेंट से जुड़े सभी दस्तावेज, एलडीए की ओर करायी की आंतरिक जांच रिपोर्ट, अभी तक की गयी कार्यवाही की रिपोर्ट पूरी रिपोर्ट भी मांगी है। जमीन फर्जीवाड़े में एलडीए व प्रशासन के उन अधिकारियों के नाम भी पूंछे हैं जो घोटाले में शामिल रहे हैं।