नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए इसकी वैधता को रद्द कर दिया. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड की बिक्री बंद करने का निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिया कि 5 साल पहले इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद से उसने किस पार्टी को कितने चुनावी बॉन्ड जारी किए हैं, इसकी जानकारी मुहैया कराए. एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को देना होगा. शीर्ष अदालत ने एसबीआई को यह भी निर्देश दिया है कि वह चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश करे. बता दें कि सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा इनकैश कराए गए चुनावी बॉन्ड का विवरण भी प्रस्तुत करना होगा. वहीं इनकैश नहीं कराए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की राशि खरीदार के खाते में वापस करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट दानदाताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए. क्योंकि कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिया जाने वाला चुनावी चंदा पूरी तरह से ‘लाभ के बदले लाभ’ की संभावना पर आधारित होता है.
राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की पहल के तहत, केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी. चुनावी बॉन्ड किसी भी व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है या व्यवसाय, संघ या निगम जिसका गठन या स्थापना भारत में हुई है, द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था. इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे. किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-कम्प्लायंट अकाउंट के माध्यम से खरीदा जा सकता था.
राजनीतिक दलों को इन्हें जारी होने से 15 दिन के भीतर इनकैश कराना होता था. इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले डोनर का नाम और अन्य जानकारी दर्ज नहीं की जाती थी और इस प्रकार दानकर्ता गोपनीय हो जाता था. किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बॉन्ड की संख्या पर कोई लिमिट तय नहीं थी. केंद्र ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, कंपनी अधिनियम 2013, आयकर अधिनियम 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 में संशोधन किए थे. संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया गया था.