बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट की गुजरात सरकार से दो टूक, सिर्फ चुनिंदा दोषियों को ही राहत क्यों ?

नई दिल्ली , बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के मामले पर केंद्र और गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें पेश की. गुजरात सरकार की तरफ से एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि दोषियों की रिहाई नियमों के मुताबिक ही की गई है.

एएसजी एसवी राजू ने कहा दोषसिद्धि के समय, अदालत को भी पता था कि 14 साल के बाद छूट दी जा सकती है. कोर्ट ने ऐसी सजा नहीं दी कि दोषियों को 30 साल बाद ही छूट दी जाएगी. बिलकिस बानो तब 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवति थीं, जब उनके साथ गैंगरेप हुआ. उनकी तीन साल की एक बच्ची समेत परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी.

केंद्र सरकार और गुजरात सरकार की तरफ से पेश एएसजी एसवी राजू ने जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच से कहा कि कोर्ट भी मानता है कि अपराध उतना जघन्य नहीं था. इसपर जस्टिस नागरत्ना ने प्रतिक्रिया दी और कहा कि अपराध जघन्य था लेकिन रेयरेस्ट ऑफ द रेयर नहीं था. एएसजी ने इसके बाद कहा कि अपराध जघन्य है लेकिन दोषियों के सिर पर लटका नहीं होना चाहिए. उन्हें 14 साल से ज्यादा समय जेल में बिताने के बाद सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “क़ानून यह नहीं कहता कि सभी को सज़ा दी जाए और फांसी दी जाए, बल्कि यह कहता है कि लोगों को सुधरने का मौका दिया जाए.”

 

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा कि सजा में छूट की पॉलिसी चुनिंदा लोगों के लिए ही आखिर क्यों हैं? दो जजों की बेंच ने पूछा कि हम यह जानना चाहते हैं कि छूट की नीति को चुनिंदा तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुधार का अवसर सिर्फ कुछ कैदियों को ही क्यों दिया गया? यह मौका तो हर कैदी को दिया जाना चाहिए. सिर्फ कुछ कैदियों को ही सुधरने का मौका क्यों दिया गया? सवाल यह है कि क्या छूट की नीति तब लागू की जा रही है जब कैदी पात्र हैं. यह सामूहिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए, यह सिर्फ उन्हें लोगों के लिए किया जाना चाहिए जो इसके पात्र हैं या फिर यह रेमिशन उन्हें मिलना चाहिए जिन्होंने अपनी सजा का 14 साल जेल में गुजार लिया है.

 

गुजरात सरकार ने बिलकिस को देषियों को किया रिहा

 

बिलकिस के दोषियों को गुजरात सरकार ने रिहा करने का आदेश जारी किया था. एएसजी ने सुप्रीम कोर्ट बेंच को बताया कि पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले के आधार पर दोषियों की रिहाई की गई. फैसले में कोर्ट ने कहा था कि रेमिशन पर फैसले का अधिकार राज्य सरकार का है ना कि केंद्र का. गुजरात सरकार ने 2014 में रेमिशन पॉलिसी में बदलाव किया था. इसके बाद उन दोषियों को रेमिशन देने का अधिकार केंद्र के पास है, जिस केस की जांच केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई हो. सुप्रीम कोर्ट ने इस राज्य सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि जहां अपराध किया गया है उसी राज्य की सरकार फैसले ले सकती है.

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