देहरादून, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का ताज एक बार फिर से पुष्कर सिंह धामी के सिर सजने जा रहा है. देहरादून में बीजेपी विधायक दल की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति नेता चुन लिया गया है. इसी के साथ सूबे में सीएम पद को लेकर चल रहे सारे कयासों पर विराम लग गया।
खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को फिर से राज्य की सत्ता की कमान सौंपी गई है. हालांकि, यह बीजेपी में एक नई संस्कृति ही कही जा सकती है, जहां हारे हुए नेता को भी दोबारा मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद आखिर बीजेपी ने पुष्कर धामी पर ही क्यों भरोसा जताया?
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बीजेपी पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी थी. धामी भले ही खुद चुनाव हार गए, पर बीजेपी को जिता गए. उत्तराखंड गठन के बाद पहली बार किसी सत्ताधारी पार्टी को राज्य में दोबारा अपनी सरकार बनाने में सफलता मिली है. सूबे में चुनाव से ठीक पहले छह महीने के अंदर दो बार मुख्यमंत्री बदलने से जनता में काफी रोष था और चुनावी बाजी कांग्रेस के पक्ष में जाती दिख रही थी.
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मुख्यमंत्री के रूप में लगभग छह महीने का ही समय धामी को मिला. उन्होंने चुनाव प्रचार में जबरदस्त भूमिका निभाई और लोगों के बीच काम करने वाले नेता के रूप में छवि बनाई. इस तरह बीजेपी को एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से उबार ले गए और पार्टी को 47 सीटें जीतने में कामयाब रही. उत्तराखंड में हर चुनाव में सत्ता बदलने के मिथक को तोड़ दिया. यही वजह रही कि धामी को हार के बाद सीएम बनाने का फैसला किया गया.
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पुष्कर सिंह धामी की उम्र 46 साल है. मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने सूबे में अपनी अलग पहचान बनाई. युवाओं के बीच उनकी काफी लोकप्रियता बढ़ गई. ऐसे में बीजेपी ने उत्तराखंड में अगली पीढ़ी का नेतृत्व विकसित करना चाहती है, क्योंकि मदन कौशिक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूरी, सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक जैसे नेता उम्रदराज हो रहे हैं, जबकि पार्टी राज्य में लंबे समय की राजनीति को ध्यान में रखकर चल रही है. इसी आधार पर पुष्कर सिंह धामी को पिछली बार सत्ता सौंपी गई थी. माना जा रहा है कि धामी तेज-तर्रार और युवा ऊर्जा के साथ काम कर मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं, जिसका उन्हें सियासी लाभ मिला है. पुष्कर सिंह धामी को पार्टी एक युवा चेहरे के रूप में देखती है, जिसके चलते उन्हें दोबारा से सत्ता की कमान सौंपी गई है.
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पुष्कर सिंह धामी आरएसएस के आंगन में पले बढ़े हैं और एबीवीपी से अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया है. वह दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. धामी को उत्तराखंड के पूर्व सीएम और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का करीबी माना जाता है. वे बेहद विनम्र स्वभाव के हैं और पार्टी के हर कार्यकर्ता की पहुंच में माने जाते हैं. इसके अलावा धामी ‘ईमानदार’ छवि वाले नेता माने जाते हैं, जिन पर किसी तरह का अभी तक कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है. संघ का बैकग्राउंड और ईमानदार छवि को देखते हुए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर अपना भरोसा जताया है.
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बीजेपी की 2017 में उत्तराखंड की सत्ता में आने के बाद दो मुख्यमंत्रियों को बदलने के पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी की गई थी. इस तरह धामी को उत्तराखंड चुनाव 2022 की तैयारी के लिए केवल छह महीने का समय मिला. मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुत कम समय में काम किया है. धामी ने 10वीं-12वीं पास छात्रों को मुफ्त टैबलेट, खिलाड़ियों के लिए खेल नीति बनाने, जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने, पौड़ी और अल्मोड़ा को रेल लाइन से जोड़ने जैसी योजनाओं का ऐलान शामिल था. ऐसे में पार्टी ने उन्हें शासन करने के लिए और अधिक समय देना चाहती है, जिसके चलते उन्हें हार के बाद भी सीएम बनाया गया है.
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बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड सियासी समीकरण का मिजाज को समझते हुए पुष्कर सिंह धामी को दोबारा से सीएम बनाने का फैसला किया है. धामी पहाड़ी क्षेत्र के ठाकुर समुदाय से आते हैं. बीजेपी ने उन्हें दोबारा से मुख्यमंत्री के रूप में चुनकर जाति और क्षेत्रीय समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश की है. उत्तराखंड में कुमाऊं बनाम गढ़वाल का क्षेत्रीय समीकरण और ठाकुर बनाम ब्राह्मण जातीय समीकरण है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हरिद्वार के एक ब्राह्मण हैं, जो गढ़वाल का एक मैदानी इलाका है. वहीं, पुष्कर सिंह धामी ठाकुर है. इस तरह से बीजेपी ने जातीय समीकरण को साधने के लिए धामी को सत्ता की कमान सौंपी है।