नई दिल्ली, वॉलमार्ट ग्रुप की डिजिटल पेमेंट कंपनी फोनपे यूजर्स को अब मोबाइल रिचार्ज करवाने पर अधिक पैसे खर्च करने होंगे।
फोनपे ने यूपीआई के जरिये 50 रुपये से अधिक के मोबाइल रिचार्ज पर 1 से 2 रुपये के बीच प्रोसेसिंग शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है। फोनपे ऐसी पहली डिजिटल पेमेंट ऐप है, जिसने यूपीआई आधारित लेनदेन के लिए शुल्क वसूलना शुरू किया है। वहीं अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनी यह सेवा मुफ्त में दे रही हैं।
अन्य कंपनियों की तरह फोनपे क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान करने के लिए भी प्रोसेसिंग शुल्क ले रही है। फोनपे के प्रवक्ता ने बताया कि रिचार्ज पर, हम एक बहुत छोटे स्तर पर एक परीक्षण कर रहे हैं, जहां कुछ यूजर्स मोबाइल रिचार्ज के लिए भुगतान कर रहे हैं। 50 रुपये से कम के रिचार्ज पर कोई शुल्क नहीं है। प्रवक्ता ने बताया कि 50 रुपये से लेकर 100 रुपये तक के रिचार्ज के लिए 1 रुपया और 100 रुपये अधिक के रिचार्ज के लिए 2 रुपये का शुल्क लिया जा रहा है। परीक्षण के हिस्से के रूप में, अधिकांश यूजर्स या तो कुछ भी भुगतान नहीं कर रहे हैं या केवल एक रुपये का शुल्क चुका रहे हैं।
थर्ड-पार्टी ऐप्स के बीच यूपीआई ट्रांजैक्शन के मामले में फोनपे के पास सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। सितंबर में कंपनी ने अपने प्लेटफॉर्म पर 165 करोड़ यूपीआई ट्रांजैक्शन को दर्ज किया है, जो ऐप सेगमेंट में लगभग 40 प्रतिशत है।
बिल भुगतान पर स्पष्टीकरण देते हुए प्रवक्ता ने कहा कि शुल्क वसूलने वाले हम अकेले नहीं हैं। बिल भुगतान पर एक छोटा शुल्क वसूलना अब एक इंडस्ट्री मानक है और ऐसा अन्य बिलर वेबसाइट और पेमेंट प्लेटफॉर्म भी कर रहे हैं। हम केवल क्रेडिट कार्ड के जरिये किए जाने वाले भुगतान पर प्रोसेसिंग शुल्क वसूलते हैं।
जुलाई में जारी बर्नस्टेन रिपोर्ट के मुताबिक, फोनपे और गूगल पे निरंतर कस्टमर इनसेंटिव्स देने में निवेश कर रहे हैं और मार्केटिंग पर 2.5 से 3.0 गुना खर्च कर रहे हैं, जबकि पेटीएम अपने मार्केटिंग खर्च को सुव्यवस्थित कर रहा है। वित्त वर्ष 2017 में पेटीएम ने अपने कुल राजस्व का 1.2 गुना मार्केटिंग पर खर्च किया, जो वित्त वर्ष 2020 में घटकर 0.4 प्रतिशत और वर्तमान में 0.2 प्रतिशत है, और इसके साथ ही उसने सभी वॉलेट, यूपीआई, पीओएस और ऑनलाइन पेमेंट के बीच मर्चेंट पेमेंट हिस्सेदारी में इजाफा किया है।
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने यूपीआई के लिए बाजार हिस्सेदारी पर एक सीमा तय की है। यहां ऐसी कोई कंपनी नहीं हो सकती, जिसकी बाजार हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से अधिक हो। बर्नस्टेन रिपोर्ट में कहा गया है कि एनपीसीआई की बाजार हिस्सेदारी सीमा के चलते फोनपे और गूगल पे को 30 प्रतिशत सीमा से नीचे अपनी हिस्सेदारी लाने के लिए अपने कस्टमर इनसेंटिव में कटौती करनी होगी।