Yom e Ashura : इस्लाम के लिए हज़रत हुसैन की याद दिलाता है मुहर्रम

लखनऊ, मोहर्रम इस्लामिक साल का पहला महीना है और इसी महीने में हजरत हुसैन ने इस्लाम को ताउम्र जिंदा रखने के लिए अपने कुनबे को कुर्बान कर दिया था. मुहर्रम हमें इस्लाम के लिए हजरत हुसैन की शहादत याद दिलाती है.

कूफा वालों ने हजरत हुसैन को खत भज कर बुलावा भेजा कि कूफा वाले उनसे बैत (अनुयायी ) होना चाहते हैं. खत मिलने के बाद हजरत हुसैन ने वहां का जायजा लेने हजरत मुस्लिम को भेजा. इस दौरान कूफा के 40 हजार लोग हजरत हुसैन के नाम पर बैत हो गए. कूफा वालों की मुहब्ब्त देख हजरत मुस्लिम ने खत लिखकर हजरत हुसैन को कूफा बुलाया. लेकिन इसकी सूचना मिलते ही कूफा के यजीद ने अपने गवर्नर को बदल दिया और बसरा के गवर्नर को कूफा बुलाया. हजरत मुस्लिम का खत पाने के बाद हजरत हुसैन अपने कुनबे से 72 सहाबा के साथ कूफा रवाना हुए. लेकिन रास्ते मे ही उन्हें कूफा वाले यजीद के धोखे व हजरत मुस्लिम की शहादत की खबर मिली. बावजूद इसके उन्होंने इस्लाम की खातिर अपने कदम को पीछे नहीं हटाया और कूफा पहुंचे.

जब हजरत हुसैन अपने कुनबे के 72 लोगों के साथ कूफा पहुंचे तो यजीद ने उन्हें अपने साथ बैत होने या जंग करने का दबाव दिया. लेकिन हजरत हुसैन ने एक अय्यार के साथ बैत होने से अच्छा इस्लाम को जिंदा रखने के लिए मैदान-ए-जंग का रास्ता अख्तियार किया. जब हुसैन यजीद के हाथों बैत नहीं हुए तो कूफा वालों ने उनपर तरह तरह की बंदिशें शुरू कर दी. नहर ए फरात का पानी बंद कर दिया. लेकिन हजरत हुसैन व उनके साथ आये 72 लोग भूखे-प्यासे रहकर भी यजीद के साथ बैत नहीं हुए और जंग लड़ते रहे.

मैदान-ए-जंग में हजरत हुसैन के लाडले हजरत अली असगर प्यास से तड़पने लगे. तब हजरत हुसैन ने यजीद से फरमाया कि हमें सारी मुसीबतें मंजूर है लेकिन दुधमुहें की हालत देखो. उन्होंने अली असगर के लिए एक घूंट पानी मांगा तो यजीद ने उसके हलक में तीर उतार दिया.

अपने नाना की उम्मत व इस्लाम को जिंदा रखने के लिए अपने कुनबे को कुर्बान कर चुके हजरत हुसैन मैदान-ए-कर्बला पहुंचे. लेकिन अजान सुन उन्होंने दो रकअत नमाज का वक्त मंगा और नमाज पढ़ने लगे. जैसे ही हजरत हुसैन सजदे में गये यजीद ने उनका सिर कलम कर दिया. हजरत हुसैन की शहादत ने इस्लाम को ताउम्र जिंदा रख दिया. इसलिए कहा भी गया है कि कत्ले-हुसैन असल में मर्ग-ए-यजीद है. इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद.

मुहर्रम की दसवीं यानी यौम-ए-आशूरा इस साल अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 17 जुलाई को यानी आज है. आज कर्बला में फातिहा के साथ मुहर्रम सम्पन्न होगा. मुहर्रम की दसवीं को ले जगह जगह जुलूस व अखाड़ा का आयोजन होगा. मुस्लिम समुदाय के लोग कर्बला में सिरनी फातिहा कराएंगे. जानकारी के अनुसार मुहर्रम की दसवीं को विभिन्न अखाड़ा कमेटियों द्वारा निशान के साथ जुलूस निकाला जाता है. शाम को कर्बला में फातिहा होता है और यहां मेले जैसा माहौल रहता है. मुहर्रम की दसवीं को ले कर्बला मैनेजिंग कमेटी ने फातिहा व अन्य कार्यक्रम की व्यापक तैयारी की है.

कर्बला या इमामबाड़े में मांगी गयी मन्नत पूरी होने पर कुछ लोग मुहर्रम के मौके पर पैकबंद के रूप में कर्बला की दौड़ लगाते हैं. पैकबंद विशेष वस्त्र पहन कर हाथ मे तलवार, मोरपंख आदि लेकर विभिन्न इमामबाडे व कर्बला तक जाते हैं . इस दौरान पैकबंद ‘या अली-या हुसैन’ का नारा लगाते हैं. बताया जाता है कि इस क्रम जो लोग उनके रास्ते में लेट जाते हैं और पैकबंद उन्हें लांघ कर आगे बढ़ते हैं तो उनका कष्ट दूर हो जाता है.

डिस्क्लेमर: यह आम आवाज़ न्यूज़ पोर्टल की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे aamawaaz. in की टीम ने संपादित नहीं किया है

Related Posts