मणिपुर यौन उत्पीड़न के 75 दिनों तक मौन रहने के पीछे आखिर सियासत क्या है? जानिए आखिर मामला क्या है

नई दिल्ली, मणिपुर में हथियारबंद लोगों के एक समूह द्वारा दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर धान के खेत में घुमाया गया. खबरों के मुताबिक इसी दिन पूर्वोत्तर राज्य में दो और आदिवासी महिलाओं के साथ कथित तौर पर गैंगरेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. इस पूरी घटना के बाद सियासत तेज हो गयी है.

इसी दिन राज्य में एक और दिल झकझोर देने वाली घटना हुई थी. इंडिया टुडे के मुताबिक, इसी दिन पूर्वोत्तर राज्य में दो और आदिवासी महिलाओं के साथ कथित तौर पर गैंगरेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई.

दो महिलाओं के नग्न परेड की वीडियो के मामले में जानकारी से पता चलता है कि यह भयावह घटना 4 मई को राज्य के कांगपोकपी जिले में हुई. इसके एक दिन बाद मेइतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष शुरू हुआ था.

मणिपुर में रहने वाले विभिन्न जनजातियों के संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम का दावा है कि वीडियो में दिख रही पीड़ित कुकी-जो जनजाति से हैं, जबकि उनका यौन उत्पीड़न करने वाली भीड़ मेइती समुदाय के लोग हैं.

जबकि यह घटना 4 मई को हुई थी, लेकिन इस जघन्य अपराध का वीडियो संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले 19 जुलाई को सामने आया. मणिपुर में एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के करीबी सूत्रों ने वीडियो जारी करने के समय के बारे में संदेह जताया है. जहां पर यह घटना हुई उस गांव का नाम बी. फैनोम है. ये हिरोक विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इसका प्रतिनिधित्व भाजपा विधायक थोकचोम राधेश्याम सिंह करते हैं. थोकचोम राधेश्याम सिंह सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी भी हैं. घटना के बाद राधेश्याम ने गुरुवार को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया.

इंडिया टुडे में छपी एक खबर के मुताबिक यह किसी भी तरह से राधेश्याम को 4 मई को कांगपोकपी में महिलाओं के साथ हुई घटना और उसके बाद वीडियो जारी करने के लिए जवाबदेह नहीं बनाता है, लेकिन हैरानी की बात है कि इस तरह का वीडियो गुप्त रहा.

बता दें कि बी. फैनोम गांव में जहां पर ये घटना हुई वहां पर करीब 40 परिवारों की बस्ती है. घटना के बाद बी. फैनोम गांव के 65 वर्षीय मुखिया थांगबोई वैफेई ने 18 मई को सैकुल पुलिस स्टेशन में इस घटना के बारे में शिकायत दर्ज कराई थी.

एक स्थानीय समाचार पोर्टल ‘हिल्स जर्नल’ ने चार जून को इस घटना और उसके बाद ग्राम प्रधान की शिकायत के बारे में एक खबर छापी थी. इसके बावजूद मणिपुर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में एक महीने से ज्यादा का समय लग गया . एफआईआर 21 जून को दर्ज हुई. 19 जुलाई को वीडियो सामने आने तक एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा ‘ पिछले दो महीनों में हत्या, आगजनी और यहां तक कि यौन उत्पीड़न के बारे में कई एफआईआर दर्ज की गई हैं और पुलिस टीमों पर बहुत ज्यादा बोझ है. सोशल मीडिया पर वीडियो आने के 24 घंटे के भीतर पहली गिरफ्तारी की गई’.

इंडिया टुडे में छपी एक खबर के मुताबिक मणिपुर पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि हमारे पास आरोपी की पहचान के लिए कोई वीडियो नहीं था. राज्य में तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए जांच धीमी गति से आगे बढ़ी.

इंडिया टुडे में छपी खबर की मानें तो राज्य की साइबर पुलिस शाखा अब वीडियो के स्रोत की जांच कर रही है, लेकिन अनौपचारिक अकाउंट से पता चलता है कि वीडियो सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष दोनों से संबंधित कुछ मेइतेई राजनीतिक नेताओं द्वारा जारी किया गया हो सकता है.

सवाल अभी भी बना हुआ है कि वीडियो को इतने लंबे समय तक कैसे छिपाकर रखा गया? इस मामले पर नजर रखने वाले लोगों के अनुसार, भले ही अपराधियों में से एक ने वीडियो रिकॉर्ड किया, लेकिन इसे दो कारणों से शेयर नहीं किया गया था- मीरा पैबिस के नाम से जाने जाने वाले महिला निगरानी समूहों ने इन वीडियो को शेयर करने पर प्रतिबंध लगा दिया है . दूसरा ये कि कुकी बहुल इलाके कांगपोकपी में इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है.

मणिपुर में मीरा पैबिस से जुड़ी महिलाएं मेइतेई महिलाएं हैं . इनका कोई राजनीतिक झुकाव नहीं है, लेकिन जब राज्य या समाज किसी संकट का सामना करता है तो वे सक्रिय हो जाती हैं महिलाओं का ये समुह मेइती समुदाय के बीच काफी नैतिक और सामाजिक प्रभाव रखती हैं.

जबकि मणिपुर में महिलाओं की सक्रियता का एक लंबा इतिहास है. मीरा पैबिस 1977 से एक्टिव है. उस साल मणिपुरी समाज की महिलाओं ने राज्य में बढ़ती शराब और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ मिलकर आवाज उठाई थी. 1980 में महिलाओं के एक बड़े समूह ने एक पुलिस स्टेशन तक मार्च किया और प्रशासन को एक व्यक्ति को रिहा करने के लिए मजबूर किया, जिसे विद्रोह के संदेह में हिरासत में लिया गया था.

इसके बाद राज्य भर में महिलाओं ने जलती हुई मशालों के साथ रात में निगरानी शुरू कर दी. धीरे-धीरे मीरा पैबिस ने सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन से लेकर इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की मांगों पर अपना फोकस किया. इस समुह ने मणिपुरी समाज के सबसे प्रभावशाली निगरानी समूह के रूप में काम करना शुरू कर दिया.

इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक पिछले दो महीनों से चल रहे जातीय संघर्ष के दौरान मीरा पैबिस ने कथित तौर पर एक सूत्रधार की भूमिका निभाई है. भारतीय सेना का ये भी दावा है कि हाल ही में महिलाओं के इस समुह ने (लगभग 1,200 महिलाओं ने) इंफाल पूर्वी जिले के इथम गांव में भारतीय सेना के एक काफिले को रोक दिया और कांगलेई यावोल कन्ना लुप (केवाईकेएल) के एक दर्जन कट्टर उग्रवादियों को रिहा करने के लिए मजबूर किया.

कांगलेई यावोल कन्ना लुप एक बैन उग्रवादी समूह है. जिसने मणिपुर में 2015 में सेना की डोगरा रेजिमेंट के काफिले पर घात लगाकर हमले किए. इस हमले में 20 जवान शहीद हो गए थे.

इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक मई में मणिपुर में हिंसा की शुरुआत के बाद से कई वरिष्ठ अधिकारी दावा कर रहे हैं कि मीरा पैबी समूह की ये महिलाएं सड़कों पर उतर रही हैं. ये सशस्त्र बलों की आवाजाही को प्रतिबंधित कर रही हैं और उपद्रवियों को लक्षित गांवों को नष्ट करने में मदद भी पहुंचा रही है. साथ ही वे सावधान हैं कि उनके समुदाय का नाम खराब न हो “.

इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक मेइतेई सोशल मीडिया कार्यकर्ता का कहना है ‘कई मौकों पर मीरा पैबिस ने युवाओं को ऐसे वीडियो शूट करने से भी रोका है, जो समुदाय को गलत तरीके से पेश कर सकते हैं. वायरल वीडियो में ये दिखाया जा रहा है कि पीड़ितों को छोड़कर कोई अन्य महिला घटना के दौरान मौजूद नहीं थी. लेकिन मुझे यकीन है कि इलाके की मीरा पैबी की महिलाओं ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि वीडियो आगे न बढ़े. इंटरनेट नहीं होने से इस काम को करने में और मदद मिली.

बता दें कि मणिपुर में जारी हिंसा को 3 महीने हो चुके हैं. हिंसा की वजह मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देना है. कुकी समुदाय का कहना था कि मैतेई ताकतवर समुदाय है, इसे जनजाति का दर्जा न मिले. इसी बाबत 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ बुलाया था. इसी दौरान हिंसा भड़की. अब महीनों बाद भी यह हिस्सा अब तक सुलग रहा है. इंटरनेट बैन है.

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