अपने शिकार को पकड़ कर उसका खून चूस जाती हैं वैंपायर मछली, 16 करोड़ साल पुराना इतिहास

नई दिल्ली, जमीन के नीचे और समंदर की गहराई में क्या-क्या राज़ छिपे हो सकते हैं, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. ऐसे में कभी-कभी खोज के दौरान कुछ अजीबोगरीब चीजें मिल जाती हैं तो बड़ी हैरानी होती है.

चीन में हाल ही में कुछ ऐसा ही हुआ है. यहां वैज्ञानिकों ने 160 मिलियन वर्ष यानी 16 करोड़ साल पुराने माने जाने वाले जीवाश्मों से लैम्प्रे की दो नई प्रजातियों की खोज की है. लैम्प्रे एक प्रकार की मछली है, जिसके जबड़े नहीं होते और ये करंट पैदा करने वाली ईल मछली की तरह दिखती है.

लैम्प्रे मछली को परजीवी जीव भी कहा जाता है, क्योंकि ये अपने शिकार को पकड़ती हैं और उसका खून चूस जाती हैं. इस वजह से इन्हें पानी का ‘वैंपायर’ भी कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में लैम्प्रे की जिन दो प्रजातियों की खोज की गई है, वो न केवल अपने शिकार का खून चूस रही थीं, बल्कि खाने के लिए उसका मांस भी निकाल रही थीं. बताया जा रहा है कि उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि शिकार के कंकाल को भी तोड़ सकती थी. वैज्ञानिक कहते हैं कि उनके दांत बताते हैं कि वो मांस भी खाती होंगी.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तरी चीन के एक जीवाश्म स्थल से लैम्प्रे की इन दोनों नई प्रजातियों के जीवाश्म की खोज की गई है. इसमें जो बड़ा जीवाश्म है, उसकी लंबाई करीब 23 इंच है. वैज्ञानिकों ने इसे यानलियाओमायजोन ऑक्सीजर (Yanliaomyzon occisor) नाम दिया है, जिसका मतलब होता है ‘हत्यारा’. वहीं, छोटे जीवाश्म की लंबाई करीब 11 इंच है और इसका नाम यानलियाओमायजोन इंजेंसडेंटेस (Yanliaomyzon ingensdentes) रखा गया है.

अब चूंकि लैम्प्रे मछलियां करोड़ों सालों से धरती पर मौजूद हैं, तब डायनासोर पर धरती पर रहा करते थे, इसलिए माना जाता है कि इन मछलियों ने उनका भी खून पिया होगा.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, सबसे पुराने संरक्षित लैम्प्रे जीवाश्म करीब 360 मिलियन साल पुराने पेलियोजोइक युग के हैं. इन जीवाश्मों से पता चलता है कि शुरुआती लैम्प्रे काफी छोटे होते थे, जिनकी लंबाई लगभग एक इंच होती थी. साथ ही ये भी पता चलता है कि और वो खून नहीं पीते थे और ना ही मांस खाते थे.

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