नई दिल्ली, हर 18 महीने में पृथ्वी के किसी न किसी हिस्से में सूर्य ग्रहण लगता है. आठ अप्रैल को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण को लेकर दुनिया भर के लोग उत्साहित हैं, क्योंकि उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखेगा और चार मिनट नौ सेकंड तक पूरी तरह से अंधेरा रहेगा.
यह सूर्य ग्रहण कनाडा, उत्तरी अमेरिका से लेकर मैक्सिको तक दिखेगा.
यह समय पिछले सूर्य ग्रहणों की तुलना में काफी लंबा है, इसलिए इस दौरान नासा के वैज्ञानिकों ने कई प्रयोग भी करने की योजना बनाई है.
पूर्ण सूर्य ग्रहण कितना दुर्लभ है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इस शताब्दी में तीनों देश यानी अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको, तीनों को मिलाकर पहली बार पूर्ण सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा.
चंद्रमा, सूर्य की तुलना में पृथ्वी से 400 गुना अधिक निकट है, लेकिन चंद्रमा आकार में सूर्य से 400 गुना छोटा भी है. इसके चलते ही जब चंद्रमा एक सीधी रेखा के बिंदू के तौर पर सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, तो यह सूर्य को ढक लेता है और हमें ग्रहण दिखाई देता है.
कई बार ये सूर्य ग्रहण दिखाई देता है और कई बार नहीं भी दिखता है. हालांकि, इस बार का सूर्य ग्रहण महत्वपूर्ण है क्योंकि लाखों लोग इस घटना को देख सकेंगे. एक अनुमान के मुताबिक इस ग्रहण को 31 लाख लोग देख सकेंगे.
अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में एनसी स्टेट यूनिवर्सिटी ग्रहण के दौरान पता लगाएगी कि इसका वन्य जीवों पर क्या असर होगा. इस प्रयोग में टेक्सास राज्य चिड़ियाघर में 20 जानवरों के व्यवहार का अध्ययन किया जाएगा.
नासा का एक्लिप्स साउंडस्केप प्रोजेक्ट भी जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
परियोजना में ग्रहण के कारण पूर्ण अंधेरे के दौरान जानवरों की आवाज़ और जानवरों की प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करने के लिए माइक्रोफ़ोन जैसे छोटे उपकरण लगाए गए हैं.
वहीं अमेरिका के वर्जीनिया में नासा के वॉलॉप्स बेस से तीन साउंडिंग रॉकेट, एक्लिप्स बेल्ट से दूर लॉन्च किए जाएंगे.
एम्ब्री रिडल एयरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी के आरोह बड़जात्या इस प्रयोग का नेतृत्व कर रहे हैं. रॉकेट सूर्य ग्रहण के दौरान वातावरण में होने वाले बदलावों को रिकॉर्ड करेगा.
तीनों साउंडिंग रॉकेट धरती से 420 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाएंगे और फिर धरती पर क्रैश हो जाएंगे. पहला रॉकेट ग्रहण से 45 मिनट पहले, दूसरा रॉकेट ग्रहण के दौरान और तीसरा रॉकेट ग्रहण के 45 मिनट बाद लॉन्च किया जाएगा.
पृथ्वी की सतह से 80 कि.मी. ऊपर से शुरू होने वाली वायुमंडल की परत को आयनमंडल कहा जाता है. इस परत में आयन और इलेक्ट्रॉन होते हैं.
यह अंतरिक्ष और वायुमंडल के बीच पृथ्वी की एक प्रकार की सुरक्षात्मक परत है. यह एक परत है जो रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है. ध्वनि रॉकेट की मदद से ग्रहण के दौरान इस परत में होने वाले बदलावों का एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया जाएगा.
सामान्य तौर पर, आयनोस्फेरिक उतार-चढ़ाव उपग्रह संचार को प्रभावित करते हैं. सूर्य ग्रहण इस परिवर्तन का विस्तार से अध्ययन करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है. क्योंकि इस अध्ययन से पता चलेगा कि कौन सी चीज़ें हमारे संचार तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं.
नासा का हाई एल्टीट्यूड रिसर्च प्लेन 50,000 फीट की ऊंचाई से ग्रहण की तस्वीर लेगा. जैसे-जैसे ग्रहण मेक्सिको से आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे विमान भी आगे बढ़ेगा और इन विमानों में कई अन्य उपकरण भी लगाए गए हैं.
इसके अलावा, ग्रहण के दौरान वायुमंडलीय और जलवायु परिवर्तनों को रिकॉर्ड करने के लिए एक एक्लिप्स बैलून प्रोजेक्ट भी लागू किया जाएगा।
करीब 600 गुब्बारे वायुमंडल में छोड़े जाएंगे. पृथ्वी की सतह से 35 किलोमीटर ऊपर तक उड़ने में सक्षम इन गुब्बारों से विभिन्न उपकरण रिकॉर्ड बनाएंगे.
इसके अलावा, पार्कर सोलर प्रोब, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा के सोलर ऑर्बिटर और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर सवार अंतरिक्ष यात्री भी इस ग्रहण के प्रभाव का अध्ययन करेंगे.
कनाडा में नियाग्रा फ़ॉल्स के पास सूर्य ग्रहण देखने के लिए दस लाख से ज़्यादा लोगों के जमा होने की उम्मीद की जा रही है.
अतीत में भी ग्रहणों के दौरान किए गए अध्ययनों से इतिहास में कुछ महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं.
अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि 19 मई, 1919 को पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान आर्थर एडिंगटन द्वारा ली गई एक तस्वीर में हुई थी.
हीलियम की खोज भी 1866 में सूर्य ग्रहण की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी.
वहीं चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर पड़ी वक्र छाया देखने के बाद ही अरस्तू ने यह सिद्ध किया था कि पृथ्वी चपटी नहीं बल्कि गोल है.