उत्तरकाशी, टलन निर्माण के दौरान हुए हादसे के बाद विशेषज्ञों की टीम कई सवाल खड़े कर रही है. यह सवाल किए जा रहे हैं कि कंक्रीट ब्लॉकिंग के बिना क्यों खुदाई शुरू की गई थी?
इसके साथ ही टनल के निर्माण के मानक और गुणवता पर भी सवाल उठे हैं. दूसरी ओर, टनल में अभी भी 41 मजूदरों की जिंदगी दांव पर लगी है. परिजन परेशान हैं और राहत कार्य अभी तक रूका हुआ है.
टनल के भीतर के ह्यूम पाइप को भी हटाने और घटना का अध्ययन करने पहुंचे अधिवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कहा कि टनल निर्माण में लापरवाही के लिए निर्माण को लेकर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. जल्द ही वह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर करेंगे.
उन्होंने कहा कि जब भी कोई टनल बनाई जाती है, ऐसे में सेफ ट्रेंचिंग करके पूरी तरह कंक्रीट की ब्लॉकिंग होती है. ऐसे में यदि पहाड़ी से ऊपर से दवाब आता है, तो कंक्रीट ब्लॉकिंग सुरंग को संभालने का काम करती है, लेकिन यहां ऐसा नहीं किया गया. बीच के हिस्से को लाइनिंग एवं गार्टर रिब के बिना ही छोड़कर काम हो रहा है.
उन्होंने कहा कि इसके पहले टनल में ह्यूम पाइप जो थे, उसे भी हटा लिया गया. उन्हीं ह्यूम पाइप की मदद से फंसे मजदूर बाहर निकल सकते थे, लेकिन उन्हें हटाने को लेकर कोई जवाब नहीं मिल रहा है.
माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कूपर बचाव अभियान की निगरानी के लिए शनिवार को सिल्कयारा सुरंग घटना स्थल पर पहुंचे. क्रिस कूपर एक चार्टर्ड इंजीनियर हैं, जिनके पास प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख सिविल इंजीनियरिंग बुनियादी ढांचे, मेट्रो सुरंगों, बड़ी गुफाओं, बांधों, रेलवे और खनन परियोजनाओं की डिलीवरी का अनुभवी ट्रैक रिकॉर्ड है.
कूपर, जो कि ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना के सलाहकार भी हैं, छह दिनों से सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों के बचाव अभियान की निगरानी करने के लिए साइट पर पहुंच गए हैं. मशीन में तकनीकी खराबी आने के बाद सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 लोगों को बचाने का काम 17 नवंबर से रुका हुआ है.
एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि सिल्क्यारा सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों तक पहुंचने के लिए चल रहा ड्रिलिंग कार्य शनिवार को रोक दिया गया था, क्योंकि बचाव दल मलबे में 25 मीटर तक घुस गए थे. 12 नवंबर को निर्माणाधीन सिल्कयारा सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद से शनिवार तक मजदूर छह दिनों से फंसे हुए हैं.
शुक्रवार को चट्टान से टकराने के बाद ऑगर मशीन ने काम करना बंद कर दिया. हालांकि दोपहर बाद मशीन दोबारा काम करने लगी.बचाव अभियान फिर से शुरू करने के लिए इंदौर से एक अतिरिक्त ऑगर मशीन हवाई मार्ग से मंगाई गई है.
बैकअप मशीन 18 नवंबर की सुबह तक साइट पर पहुंचने की उम्मीद थी. नई मशीन 5 मीटर प्रति घंटे की गति से ड्रिल कर सकती है, हालांकि मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए यह मानक गति से काम कर सकती है.