सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश, सरकारी नौकरी में चयनितों का छह महीने में हो पुलिस सत्यापन, अदालत ने कहा- बाद में नियमित हों नियुक्तियां

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के पुलिस अधिकारियों को सरकारी नौकरियों में चुने गए उम्मीदवारों के दस्तावेज की नियुक्ति से छह महीने के भीतर जांच व सत्यापन करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि उम्मीदवारों की साख सत्यापित होने के बाद ही उनकी नियुक्तियों को नियमित किया जाना चाहिए, ताकि आगे की जटिलताओं से बचा जा सके।

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 16 अगस्त, 2023 के फैसले को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के एक फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की रिट याचिका को अनुमति दी थी। न्यायाधिकरण में नेत्र सहायक बासुदेव दत्ता की सेवानिवृत्ति की तारीख से दो महीने पहले उनकी बर्खास्तगी को रद्द कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता 6 मार्च, 1985 को सार्वजनिक सेवा में शामिल हुआ था, लेकिन पुलिस की ओर से सत्यापन रिपोर्ट विभाग को सेवानिवृत्ति की तिथि से केवल दो महीने पहले 7 जुलाई, 2010 को इस आधार पर भेजी गई कि वह देश का नागरिक नहीं था। अपीलकर्ता ने अपने पिता के पक्ष में 19 मई, 1969 को जारी प्रवासन प्रमाणपत्र के आधार पर भारतीय होने का दावा किया था। दत्ता की याचिका की जांच करने पर अदालत ने माना कि अपीलकर्ता के खिलाफ पारित बर्खास्तगी का आदेश मनमाना, अवैध और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, जिसे बरकरार नहीं रखा जा सकता। पीठ ने पाया कि न्यायाधिकरण का यह कहना सही था कि अपीलकर्ता को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना और उसके समक्ष अपना मामला स्पष्ट करने का कोई अवसर दिए बिना बर्खास्त कर दिया गया था।

कहीं नहीं बताया गया कि अपीलकर्ता नियुक्ति के लिए अनुपयुक्त क्यों
पीठ ने कहा कि कारण बताओ नोटिस समेत इन सभी दस्तावेज में कोई कारण नहीं बताया गया था कि अपीलकर्ता को पद पर नियुक्ति के लिए अनुपयुक्त क्यों माना गया। इसके अलावा पुलिस सत्यापन रिपोर्ट अपीलकर्ता को नहीं दी गई। हर आदेश और नोटिस के कारणों पर जोर देते हुए पीठ ने कहा, हर प्रशासनिक या अर्ध-न्यायिक आदेश में कारण अवश्य होने चाहिए।

  • ऐसे कारण न सिर्फ यह सुनिश्चित करने में सहायक होते हैं कि अथॉरिटी ने तथ्यों और कानून पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि पीड़ित पक्ष को कानून के अनुसार आदेश का विरोध करने के लिए आधार भी प्रदान करते हैं। पीठ ने कहा कि किसी भी कारण के अभाव में, न्यायिक अधिकारियों के लिए आदेश की सत्यता का परीक्षण करना या दूसरे शब्दों में, न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग करना भी मुश्किल होता है।

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