नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के कथित सदस्य अरीब एजाज मजीद को जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनआईए की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने एनआईए की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपी पहले ही छह साल से अधिक समय से जेल में रह चुका है और निचली अदालत ने उसकी जमानत के लिए कड़ी शर्तें रखी हैं.
एनआईए की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी कि मजीद एक आतंकवादी है जो सीरिया गया था और मुंबई पुलिस मुख्यालय में विस्फोट करने के लिए देश वापस आया था. राजू ने कहा कि यह गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला है. आरोपी का अच्छा व्यवहार होना जमानत का आधार नहीं हो सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा 17 मार्च 2020 को मजीद को जमानत पर रिहा करने के फैसले को बरकरार रखा था. मजीद की ओर से एडवोकेट फारुख रशीद कैविएट के तौर पर पेश हुए थे. मजीद को 29 नवंबर, 2014 को मुंबई एटीएस ने गिरफ्तार किया था. बाद में उसे एनआईए को सौंप दिया था. एनआईए के अनुसार वह शुरुआत में मई, 2014 में तीर्थयात्रा वीजा पर इराक गया था, लेकिन वह आईएसआईएस में शामिल होने के लिए सीरिया चला गया. उसे हथियारों और अग्निशस्त्रों से निपटने का प्रशिक्षण दिया गया था और वह इराक व सीरिया में आतंकवादी कृत्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहा था।
एजेंसी ने दावा किया कि आरोपी न केवल इराक और सीरिया में, बल्कि भारत में भी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भारतीयों और गैर-निवासियों को आतंकवादी संगठन में शामिल होने के लिए भर्ती करने की कोशिश कर रहा था. एजेंसी का आरोप है कि आरोपी भारत में गलत मकसद और हमले के इरादे से आया था।