नई दिल्ली, अदालतों द्वारा ‘लगातार तारीख’ देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। अदालत ने माना है कि मामलों के टालमटोल करने से उस पर अनावश्यक बोझ पड़ता है क्योंकि उसने एक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की है जिसकी अग्रिम जमानत याचिका पिछले सात महीनों से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
इस मामले में न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने यह कहते हुए राहत दी कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसके समक्ष लंबित अग्रिम जमानत याचिका पर अभी तक कोई विचार नहीं किया है। जजों ने कहा कि हम मानते हैं कि इस तरह की टालमटोल से हमपर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को जांच के दौरान कभी गिरफ्तार नहीं किया गया था, हालांकि उसने जांच में सहयोग किया। ऐसे में, आरोप पत्र दायर होने पर, याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने और उसे अदालत के समक्ष पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कानूनी स्थिति को अब हमने स्पष्ट कर दिया है। शीर्ष अदालत ने एक आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत की मांग करने वाले एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम ट्रायल कोर्ट के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख तक याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के खिलाफ अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हैं और सीआरपीसी की धारा 82 (फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) के तहत 3 अगस्त, 2021 के आदेश के संचालन पर रोक लगाते हैं। निचली अदालत के समक्ष पेश होने वाले याचिकाकर्ता के साथ कानून के अनुसार निपटा जाएगा।
आपको बता दें कि गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ संज्ञान लेते हुए उसके खिलाफ समन जारी किया गया था। समन मिलने पर याचिकाकर्ता ने 16 जनवरी 2021 को अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया था जिसे 28 जनवरी को अस्वीकार कर दिया गया था।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने 3 फरवरी, 2021 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन दायर किया। यहां भी सुनवाई में देरी हुई तो याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।