एनसीईआरटी की किताबों से बाबरी मस्जिद विध्वंस, हिंदुत्व की राजनीति, 2002 के गुजरात दंगों और अल्पसंख्यकों से जुड़े कई संदर्भ हटाए गए, प्रेस रिव्यू

नई दिल्ली, अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में बाबरी मस्जिद, हिंदुत्व की राजनीति, 2002 के गुजरात दंगों और अल्पसंख्यकों से जुड़े कई संदर्भ हटा दिए हैं.

पाठ्यक्रम में किया गया ये बदलाव इस शैक्षणिक सत्र से लागू होगा. बीते कुछ सालों में एनसीईआरटी ने सिलेबस में कई ऐसे बदलाव किए है.

इन बदलावों को एनसीईआरटी ने गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया.

एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं, जिससे भारत में लगभग 30,000 स्कूल जुड़े हुए हैं.

अखबार के मुताबिक चैप्टर 8 में, ‘भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम’ से “अयोध्या विध्वंस” का संदर्भ हटा दिया गया.

खबर में लिखा गया है कि “राजनीतिक मोबिलाइजेशन के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन और अयोध्या विध्वंस (बाबरी मस्जिद विध्वंस) की लेगेसी क्या है?” इसे बदलकर “राम जन्मभूमि आंदोलन की विरासत क्या है?” कर दिया गया है.

संस्था ने इस बदलाव के लिए तर्क दिया है कि चैप्टर में नए बदलावों के साथ समन्वय बिठाने के लिए प्रश्नों को बदला गया है.

इसी चैप्टर से बाबरी मस्जिद और हिंदुत्व की राजनीति का जिक्र भी हटा दिया गया है.

पहले पैराग्राफ़ में लिखा था- “कई घटनाओं के नतीजे के रूप में दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे (जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था) को गिराया गया. यह घटना देश की राजनीति में कई बदलावों की शुरुआत का प्रतीक बनी और भारतीय राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्रकृति को लेकर बहस तेज हो गई. इसी के साथ देश में बीजेपी का उदय हुआ और ‘हिंदुत्व’ की राजनीति तेज़ हुई.”

अब ये पैराग्राफ़ बदल दिया गया है. नया पैराग्राफ़ कुछ इस तरह है- “अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर सदियों पुराने कानूनी और राजनीतिक विवाद ने भारत की राजनीति को प्रभावित करना शुरू कर दिया जिसने कई राजनीतिक परिवर्तनों को जन्म दिया. राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन, केंद्रीय मुद्दा बन गया, जिसने धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर चर्चा की दिशा बदल दी. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले (9 नवंबर, 2019 को घोषित) के बाद इन बदलावों का नतीजा ये हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ.”

अख़बार के मुताबिक़ एनसीईआरटी ने कहा है कि ये बदलाव ‘राजनीति में हुए हालिया बदलावों’ को ध्यान में रख कर किया गया है.

एनसीईआरटी ने चैप्टर 5 में भी इसी तरह के कुछ बदलाव किए हैं.

चैप्टर 5 में डेमोक्रेटिक राइट्स से गुजरात दंगों का संदर्भ हटा दिया गया है. इस चैप्टर में एक न्यूज़ कोलाज दिया गया था जिसमें गुजरात के दंगों ज़िक्र था.

पहले इस पैराग्राफ़ में लिखा था- “क्या आपने इस पेज पर न्यूज़ कोलाज में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का संदर्भ देखा? ये संदर्भ मानव अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता और मानवीय गरिमा के लिए संघर्ष को दर्शाते हैं. कई क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामले सामने आए हैं, उदाहरण के लिए- गुजरात दंगे को पब्लिक नोटिस में लाया गया.”

अब इस पैराग्राफ़ को बदल कर लिखा गया है- “देश भर में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामलों को पब्लिक नोटिस में लाया गया.”

गुजरात के दंगों का संदर्भ हटाने के पीछे संस्था ने तर्क दिया है कि “न्यूज़ कोलाज और इसका कंटेंट एक ऐसी घटना का जिक्र करता है जो 20 साल पुरानी है और न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से हल हो गई है.”

सिलेबस में कुछ जगहों पर, जहां मुसलमान समुदाय का ज़िक्र है उसमें भी बदलाव कर दिया गया है.

चैप्टर 5 में- ‘अंडरस्टैंडिंग मार्जिनलाइजेशन’ से मुसलमानों को विकास के लाभों से “वंचित” करने से जुड़ा संदर्भ हटा दिया गया है.

अब तक पैराग्राफ़ में लिखा था- “2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम भारत की आबादी का 14.2% हैं और आज भारत में अन्य समुदायों की तुलना में वो हाशिए पर रहने वाला समुदाय माना जाता है. ये लोग सालों से सामाजिक-आर्थिक विकास के लाभों से वंचित हैं.”

अब बदले हुए पैराग्राफ़ में लिखा गया है- “2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम भारत की आबादी का 14.2% हैं. वे सामाजिक-आर्थिक विकास में तुलनात्मक रूप से कमज़ोर हैं और इस लिए उन्हें हाशिए पर रहने वाला समुदाय माना जाता है.

द हिंदू अख़बार ने एक ख़बर को अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा है जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के तैयार किए गए मॉडल नियमों के अनुसार, बच्चे के जन्म का पंजीकरण करते समय पिता और मां दोनों के धर्म को अलग-अलग दर्ज किया जाएगा.

इस नियम को राज्य सरकारों की ओर से नोटिफ़ाई किया जाएगा.

पहले, जन्म रजिस्टर करते समय केवल परिवार का धर्म दर्ज किया जाता था. अब जो प्रस्तावित “फॉर्म नंबर 1-जन्म रिपोर्ट” है उसमें धर्म वाले कॉलम का विस्तार किया जाएगा इसमें अब “पिता का धर्म” और “मां का धर्म” भी बताना होगा.

अगर कोई बच्चा गोद ले रहा है तो उसे भी ऐसा करना होगा.

पिछले साल 11 अगस्त को संसद में जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम, 2023 पारित किया गया था इसके अनुसार, जन्म और मृत्यु डेटाबेस को राष्ट्रीय स्तर पर मेंटेन किया जाएगा और इसका इस्तेमाल राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए किया जा सकता है , मतदाता सूची, आधार संख्या, राशन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, ऐसे अन्य डेटाबेस को अपडेट करने के लिए किया जा सकता है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच स्थित टापू कच्छतीवु को लेकर हो रहे विवाद के बीच पहली बार श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने आधिकारिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कच्छतीवु पर बातचीत फिर से शुरू करने का कोई कारण नहीं नज़र आता. भारत ने 50 साल पहले इस पर दावा छोड़ दिया था.

तीन अप्रैल को स्थानीय मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा- “यह एक ऐसी समस्या है जिस पर 50 साल पहले चर्चा हुई थी और समाधान हुआ था और इस पर आगे चर्चा करने की कोई ज़रूरत नहीं है.”

इससे पहले अख़बार ने एक आधिकारिक सूत्र के हवाले से लिखा था कि रानिल विक्रमसिंघे प्रशासन इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देगा क्योंकि भारत में ये विवाद आगामी लोकसभा चुनाव के कारण दो राजनीतिक पार्टियों के बीच

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