बदल जायेंगे कई कानून और धाराएं, कहीं भी दर्ज होगी एफआईआर; 2027 तक अदालतें ऑनलाइन, अमित शाह ने लोकसभा में विधेयक किए पेश

नई दिल्ली, अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय आपराधिक प्रणाली में आमूलचूल बदलाव लाने वाले तीनों विधेयकों को पेश करते हुए जोर दिया कि प्रस्तावित कानूनों से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की भावना केंद्र में आ जाएगी।

शाह ने कहा, त्वरित न्याय और लोगों की समकालीन जरूरतों व आकांक्षाओं के अनुरूप कानून प्रणाली बनाने के लिए बदलाव किए गए हैं। 2027 तक सभी अदालतों को ऑनलाइन कर दिया जाएगा। जीरो एफआईआर कहीं से भी रजिस्टर की जा सकती है। अगर किसी को भी गिरफ्तार किया जाता है, तो उसके परिवार को तुरंत सूचित करना होगा। गुनाह कहीं भी हो, एफआईआर देश के किसी भी हिस्से में दर्ज की जा सकेगी। ई-एफआईआर पर जोर रहेगा।

गृह मंत्री ने राजद्रोह कानून के विवादास्पद मुद्दे पर सरकार के रुख में एक बड़े बदलाव का संकेत दिया। उन्होंने कहा, प्रस्तावित आईपीसी प्रतिस्थापन विधेयक, जिसे भारतीय न्याय संहिता, 2023 (विधेयक) के रूप में जाना जाएगा। यह राजद्रोह कानून (धारा 124 ए) को पूरी तरह से निरस्त कर देगा। नए कानून में सरकार ने राज्य के विरुद्ध अपराध भाग में धारा 150 शामिल की है, जो देश की संप्रभुता, एकता- अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध मानती है।

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का स्थान लेने वाली भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कुल 533 धाराएं होंगी। सीआरपीसी में 478 धाराएं हैं। इसकी 160 धाराओं में बदलाव किया गया है, 9 धाराएं जोड़ी व 9 हटाई गई हैं। नए प्रावधानों में सबूत जुटाते समय वीडियोग्राफी करना जरूरी होगा। जिन धाराओं में सात साल से अधिक की सजा है, वहां पर फॉरेंसिक टीम सबूत जुटाने पहुंचेगी। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे दिल्ली में अनिवार्य कर दिया गया है। सभी राज्यों में फॉरेंसिक का इस्तेमाल जरूरी होगा। 90% से अधिक दोषसिद्धि दर पाने के लिए पुलिस द्वारा जांच, अभियोजन और फॉरेंसिक में सुधार जरूरी किया है। फॉरेंसिक विश्वविद्यालय बनाने का भी प्रावधान है।

अब छोटे मामलों में समरी ट्रायल
पहली बार, सजा के एक नए तरीके के रूप में सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई है। छोटे मोटे मामलों में समरी ट्रायल के माध्यम से तेजी आएगी। कम गंभीर मामलों, चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना अथवा रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करने, आपराधिक धमकी जैसे अपराधों के लिए समरी ट्रायल को अनिवार्य बनाया गया है। उन मामलों में जहां सजा तीन वर्ष (पूर्व में दो वर्ष) तक है, मजिस्ट्रेट लिखित रूप में दर्ज कारणों के अंतर्गत इसमें समरी ट्रायल कर सकता है।

किसी की मानहानि करने, नशे में दुर्व्यवहार जैसे छोटे अपराधों में अब सामुदायिक सेवा करनी होगी। वैसे मानहानि मामले में आईपीसी के तहत अधिकतम दो साल सामान्य कारावास या जुर्माना या दोनों ही सजा का प्रावधान है। नए बदलाव के तहत इसमें सामुदायिक सेवा को भी जोड़ दिया गया है। इसी तरह नशे में दुर्व्यवहार पर अभी 24 घंटे कैद की सजा और 10 रुपये जुर्माने का प्रावधान है। अब जुर्माना बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया है।

सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी से रोकने के इरादे से अगर कोई आत्महत्या का प्रयास करता है तो उसे एक साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों या सामुदायिक सेवा की सजा हो सकती है। 5000 रुपये तक के मूल्य के सामान की पहली बार चोरी करने वाले व्यक्ति को चोरी का सामान लौटाने या उसके मूल्य का भुगतान करने पर सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।

सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कोई मामला दर्ज है, तो 120 दिनों में केस चलाने की अनुमति जरूरी है। घोषित अपराधियों की संपत्ति कुर्क की जाएगी। संगठित अपराध में कठोर सजा होगी। सामूहिक दुष्कर्म में 20 साल या आजीवन कारावास की सजा होगी। 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन शोषण मामले में मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा जाएगा। नए प्रावधानों में 10 वर्ष अथवा अधिक की सजा या आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी घोषित किया जा सकता है। सरकार ऐसे अपराधियों की भारत से बाहर की संपत्तियों की कुर्की भी कर सकती है।

अपराध की कमाई वाली संपत्तियों की जब्ती आसान
किसी अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति को कुर्क करने, जब्त करने के संबंध में नई धारा जोड़ी गई है। जांच अधिकारी इसका संज्ञान लेने के लिए न्यायालय में आवेदन दे सकता है कि संपत्ति को आपराधिक गतिविधियों के जरिये प्राप्त किया गया है। यदि संपत्तिधारक इस बारे में ठोस स्पष्टीकरण देने में विफल रहता है तो इस प्रकार की संपत्ति को न्यायालय के जरिये कुर्क किया जा सकता है।

देश के पुलिस थानों में बड़ी संख्या में वाहन समेत अन्य संपत्तियां पड़ी हैं। जांच के दौरान कोर्ट या मजिस्ट्रेट के जरिये संपत्ति का विवरण तैयार करने व फोटो/वीडियो बनाने के बाद ऐसी संपत्तियों के त्वरित निपटान का प्रावधान किया है। फोटो या वीडियो का किसी भी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उपयोग हो सकेगा। फोटो/वीडियो बनाने के 30 दिन में संपत्ति के निपटान, नष्ट करने, जब्ती या वितरण का आदेश दिया जाएगा।

नए कानूनों में गुलामी की निशानियों से भरे 475 शब्दों को हटा दिया है। मौजूदा कानूनों में पार्लियामेंट ऑफ यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, नोटिफिकेशन बाई द क्राउन रिप्रेज़ेन्टेटिव, लंदन गैजेट, ज्यूरी व बैरिस्टर, लाहौर गवर्नमेंट, कॉमनवेल्थ के प्रस्ताव, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड पार्लियामेंट का जिक्र है। इनमें हर मैजेस्टी और बाइ द प्रिवी काउंसिल का संदर्भ भी हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं होंगी। मूल कानून में 167 धाराएं थीं। कुल 23 धाराओं में बदलाव किया गया है। एक नई धारा जोड़ी गई है और पांच धाराएं हटाई गई हैं। इस कानून में दस्तावेज की परिभाषा का विस्तार किया गया है। इसमें इलेक्ट्राॅनिक या डिजिटल रिकाॅर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग्स, कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज ,स्मार्टफोन या लैपटॉप के मैसेजेज, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिजिटल उपकरणों पर उपलब्ध मेल को शामिल किया गया है।

नए कानून में एफआईआर से लेकर केस डायरी आरोपपत्र और फैसले तक को डिजिटल करने का प्रावधान किया गया है। समन और वारंट जारी करना, उनकी सर्विस तथा कार्यान्वयन सब कुछ डिजिटल होगा। शिकायतकर्ता तथा गवाहों का परीक्षण, जांच पड़ताल तथा मुकदमे में साक्ष्यों की रिकार्डिंग, उच्च न्यायालय में मुकदमे एवं सभी अपीलीय कार्यवाहियां, सभी पुलिस थानों और न्यायालयों द्वारा एक रजिस्टर में ईमेल एड्रेस, फोन नंबर अथवा ऐसा कोई अन्य विवरण रखा जाएगा। पुलिस सर्च करने की पूरी प्रक्रिया अथवा किसी संपत्ति के अधिग्रहण की इलेक्ट्राॅनिक डिवाइस से वीडियोग्राफी की जाएगी। पुलिस ऐसी रिकार्डिंग बिना किसी देरी के संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजेगी।

भारतीय न्याय संहिता में मोबाइल फोन या चेन स्नैचिंग जैसे अपराधों के लिए भी सजा का प्रावधान किया है। झपटमारी के लिए धारा 302 के तहत नया प्रावधान जोड़ा है। इसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। गंभीर चोट के कारण पीड़ित के निष्क्रिय होने अथवा स्थायी रूप से दिव्यांग होने पर अब आरोपी को अधिक कठोर दंड का प्रावधान होगा। बच्चों से अपराध कराने वाले व्यक्ति को अब कम से कम 7 साल जेल भुगतनी होगी। सजा 10 साल तक बढ़ाई जा सकेगी।

आईपीसी में आत्महत्या के प्रयास के लिए धारा 309 का इस्तेमाल होता था और इसमें एक साल की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था। भारतीय न्याय संहिता में इसके लिए धारा 224 का प्रावधान है, जो कहती है, जो भी किसी सरकारी सेवक को उसके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने या बाधित करने के इरादे से आत्महत्या का प्रयास करता है, उसे अधिकतम एक साल कैद या जुर्मान या दोनों अथवा सामुदायिक सेवा की सजा हो सकती है। लापरवाही से मौत में 10 साल तक कैद : किसी की जल्दबाजी अथवा लापरवाही के कारण किसी की मौत होने, आरोपी के फरार हो जाने और पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने खुद को पेश करने और घटना का खुलासा करने में विफल रहने पर अब 7 साल की सजा होगी जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। जुर्माना भी लगाया जाएगा।

अदालत को सात दिनों के अंदर फैसले की जानकारी ऑनलाइन देनी होगी। फैसले में देरी को खत्म करने के लिए विधेयक में जांच अधिकारी की जगह उस समय मौजूद अधिकारी के गवाही देने का प्रावधान किया है। कई मामले में जांच अधिकारी के स्थानांतरण या सेवानिवृत्ति के कारण गवाही में देरी होती है। इससे बचने के लिए अब ट्रायल के दौरान जो अधिकारी उस समय पदस्थापित होंगे, गवाही उन्हीं को देनी होगी।

Related Posts