इम्फाल, मणिपुर 3 मई से हिंसा की आग में लगातार जल रहा है. रोजाना वहां से प्रदर्शन, आगजनी और हिंसा की नयी खबरें सामने आ रही हैं. मैतेई और कुकी समुदाय एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे हैं. दोनों ही समुदाय पीछे हटने और समझौता के मूड में नहीं है.
नतीजा है कि राज्य पूरी तरह से अशांत हो चुका है. सरकार भी इसको लेकर चिंतित है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद वहां पहुंचकर शांति स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन परिणाम सार्थक नहीं रहा. अब मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग उठ रही है. जबकि मैतेई समुदाय ने केंद्र सरकार से अपील की दी है कि वे कुकी से बात नहीं करे.
इंफाल के कई नागरिक समाज संगठनों के साझा मंच ‘कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटिग्रिटी (सीओसीओएमआई)’ ने मणिपुर में जारी अशांति के लिए कुकी उग्रवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराते हुए केंद्र से अपील की कि वह उनसे बात नहीं करे. सीओसीओएमआई ने यह भी दावा किया कि कुकी उग्रवादी संगठनों के सदस्य ‘विदेशी’ हैं. सीओसीओएमआई के संयोजक जितेंद्र निंगोम्बा ने कहा, मीडिया के सूत्रों से हमें सूचना मिली है कि भारत सरकार कुकी संगठनों के साथ बातचीत करने वाली है. हम पूरी तरह से इसके खिलाफ हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को संघर्ष विराम (एसओओ) से जुड़े संगठनों में से किसी के साथ वार्ता नहीं करनी चाहिए.
केंद्र, मणिपुर सरकार और दो कुकी उग्रवादी संगठनों– ‘कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन’ और ‘यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट’ के बीच एसओओ पर हस्ताक्षर किये गये थे. यह संधि 2008 में हुई थी जिसकी अवधि कई बार बढ़ाई गई. निंगोम्बा ने कहा, हम कुकी उग्रवादी संगठनों और भारत सरकार के बीच किसी भी वार्ता के विरूद्ध हैं क्योंकि ये संगठन विदेशी नागरिकों के संगठन हैं. उन्होंने कहा कि राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखने और पृथक प्रशासन की अनुमति नहीं देने की अपनी मांग को लेकर सीओसीओएमआई 29 जुलाई को रैली आयोजित करेगी.
मणिपुर में चिन-कुकी-मिजो-जोमी से संगठन से संबद्ध 10 आदवासी विधायकों ने मैतेई और आदिवासियों के बीच हिंसक संघर्ष के आलोक में केंद्र से अपने समुदायों के लिए पृथक प्रशासन के गठन की अपील की है. इस बीच, नई दिल्ली में सीओसीओएमआई के प्रवक्ता के अथौबा ने राज्य और केंद्र सरकार पर मणिपुर में हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, गुजरात दंगों (2002) के दौरान स्थिति को नियंत्रित करने में चार दिन लगे लेकिन मणिपुर जैसे छोटे राज्य में बल की तैनाती के बावजूद हिंसा को नियंत्रित क्यों नहीं किया जा सकता है. अथौबा ने असम राइफल्स पर उग्रवादियों का समर्थन करने का भी आरोप लगाया, और कहा कि उनका समूह इस संबंध में साक्ष्य इकट्ठा कर रहा है. उन्होंने मांग की कि अर्धसैनिक बल की कुछ बटालियनों को राज्य से हटा दिया जाए. असम राइफल्स ने पहले ही सीओसीओएमआई के खिलाफ राजद्रोह और मानहानि का मामला दर्ज किया है क्योंकि संगठन के प्रमुख ने बहुसंख्यक समुदाय से हथियार न सौंपने का आह्वान किया था.
19 जुलाई को मणिपुर से एक वीडियो सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया के सामने आया. जिसने हिंसा की आग को और बढ़ा दिया. 30 सेकंड के वीडियो में 1000 से अधिक लोगों की भीड़ को दो महिलाओं को निर्वस्त्र का घुमाते हुए देखा गया. जिसके बाद पूरे देश में आक्रोश बढ़ गयी. सड़क से लेकर संसद तक इस घटना की निंदा की गयी. हालांकि यह घटना 4 मई की बतायी जाती है. दो महीने के बाद एक्शन में आयी पुलिस ने अबतक इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार की है और 12 लोगों की पहचान कर ली है.
इस पूर्वोत्तर राज्य में करीब तीन महीने पहले जातीय हिंसा शुरू हुई थी जिसमें 160 से अधिक लोगों की जान चली गयी तथा सैकड़ों अन्य घायल हुए. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान हिंसा भड़की थी. राज्य में मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.