लखनऊ, कई साल से शहर का कूड़ा प्रबंधन देख रही मेसर्स ईको ग्रीन कंपनी फेल साबित हो रही है। कंपनी कूड़े का प्रबंधन करने के बजाय कुप्रबंधन कर रही है औैर शहरवासियों को गंदगी के बीच रहना पड़ रहा है।
सड़कों से निकलने पर दुर्गंध से बचने के लिए नाक पर रूमाल रखना पड़ रहा है। कई बार जुर्माना और नोटिस जारी होने के बाद भी कंपनी में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है और नगर निगम कंपनी से अनुबंध खत्म करने में असहाय सा महसूस कर रहा है, क्योंकि शासन ने कंपनी से अनुबंध कर रखा है और शासन के अफसर किसी तरह की कार्रवाई करने के बजाय मौन हैं। नगर निगम सदन में भी पार्षद एक सुर से कंपनी केा खिलाफ आवाज उठाने के साथ ही अनुबंध खत्म करने की मांग कर चुके हैं।
मंगलवार को महापौर संयुक्ता भाटिया को सड़क पर कूड़ा उसी तरह से बिखरा मिला, जैसा पहले भी मिल चुका है। लोक मंगल दिवस से वापस हो रहीं महापौर ने गोमती नगर के दयाल पैराडाइज के पास बने ईकोग्रीन के डंपिंग यार्ड का निरीक्षण किया। यहां पाया कि कूड़ा सड़क पर बिखरा है। महापौर ने मेसर्स इकोग्रीन के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई, और सारा कूड़ा हटाने के निर्देश दिए। महापौर ने पाया कि कूड़ा बीनने वाले कूड़े से प्लास्टिक निकालकर बोरों में अलग से रखे थे। करीब तीन दर्जन बोरों में प्लास्टिक एकत्र थी। महापौर ने कड़ी नाराजगी जताते हुए मौके पर मौजूद ईकोग्रीन के अधिकारी राजेश मथ और नागार्जुन रेडी से जबाब तलब किया तो इकोग्रीन के अधिकारी बगले झांकने लगे और कोई उत्तर न दे सके। महापौर ने नगर आयुक्त को फोन कर तत्काल कार्यवाही कर जुर्माना लगाने का निर्देश दिया। निरीक्षण के समय पार्षद राम कृष्ण यादव, जोनल अधिकारी सुजीत श्रीवास्तव, नगर अभियंता सुरेश मिश्रा भी मौजूद थे।
उच्च प्रभाव के कारण मेसर्स ईको ग्रीन के अधिकारियों पर जुर्माने का भी कोई असर नहीं दिख रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही नगर निगम ने 2.2 करोड़ का जुर्माना कंपनी पर लगाया था। यह जुर्माना घर-घर से कूड़ा उठाने में लापरवाही बरतने पर लगाया गया था। इतना ही नहीं कूड़े का प्रबंधन करने की गति भी धीमी पाई गई थी। जुर्माना लगाने की कार्रवाई नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने अधिकारियों की जांच रिपोर्ट के आधार पर की थी। जांच में पाया गया था कि मोहान रोड शिवरी प्लांट पर कूड़े की मात्रा के अनुसार उसका प्रबंधन करने के मशीनें लगाई जानी थी लेकिन प्लांट के निरीक्षण में पाया गया था सभी मशीने काम नहीं कर रही थीं। कूड़े के निस्तारण की प्रक्रिया भी संतोषजनक नहीं थी। प्लांट परिसर में 3,40,000 टन पुराना कूड़ा एकत्र था, जिसका प्रबंधन नहीं किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया कि मेसर्स ईको ग्रीन को कई बार नोटिस देने के बाद और तीन शिफ्ट में प्लांट चलाने के आदेश पर भी कोई सुधार नहीं दिखा।