दिमाग को लम्बे समय तक स्वस्थ्य रखता है लोगों के साथ घुलना मिलना और खुश रहना

नयी दिल्ली , एक अध्ययन में दावा किया गया है कि यदि शुरुआती दिनों में आपका सामाजिक मेल-जोल अच्छा है और समाज में लोगों के साथ बातचीत अच्छी है तो लंबे समय तक आपका संज्ञात्मक बोध अच्छा रहेगा.

यानी लोगों के साथ जल्दी से घुल मिल जाते हैं, उनके साथ संवाद स्थापित कर लेते हैं तो आपका दिमाग लंबे समय तक हेल्दी रहेगा. अध्ययन के मुताबिक जो लोग दूसरों की अधिक सुनते हैं, दूसरों की बातों में दिलचस्पी लेते हैं, उनका दिमागी हेल्थ बुढ़ापे तक सही रहती है. आमतौर पर यह देखा जाता है कि 60 की उम्र के बाद लोगों की याददाश्त कमजोर होने लगती है. उनमें संज्ञात्मक बोध भी कम होने लगता है. वे चीजों को जल्दी ही भूलने लगते हैं. लेकिन इस अध्ययन में कहा गया है कि इन सबसे बचने के लिए आप शुरुआत से ही सामाजिक मेल जोल को बढ़ाइए.

खबर के मुताबिक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अगर शुरुआती दिनों में समाज के प्रति आप सकारात्मक रवैया रखते हैं और दूसरों की बातों को अच्छी तरह सुनते हैं तो लंबे समय तक आपका दिमाग दुरुस्त रहेगा और संज्ञात्मक क्षमता बुढापे तक कायम रहेगी. जो लोग गुड लिस्नर हैं उन्हें तंत्रिका संबंधी बीमारी जैसे कि अल्जाइमर होने की आशंका भी बहुत कम रहती है.

यह अध्ययन जामा नेटवर्क में प्रकाशित हुआ है. रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने पाया है कि अगर आपको ऐसा लगे कि हमेशा किसी से बात करने की जरूरत है या उस व्यक्ति की तलब हो जिससे आप सुकून से बात कर सकते हैं और उसको सुन सकते हैं तो ऐसी दशा में संज्ञात्मक बोध की क्षमता बढ़ जाती है. इसे दिमाग को बेहतर तरीके से काम करने के उपायों के तहत देखा जा सकता है. यह काम दिमाग में किसी तरह की बीमारी होने और उस पर उम्र का प्रभाव धीमा करने में भी सहायक है.

इस अध्ययन में अमेरिका के फ्रेमिंघम हार्ट स्टडी में 2,171 लोगों को शामिल किया गया जिनकी औसत उम्र 63 साल के आस-पास थी. लंबे समय तक किए गए इस अध्ययन में प्रतिभागियों के दिमाग से संबंधित विभिन्न जानकारियां जुटाई गईं. अध्ययन में पता लगाया गया कि प्रतिभागी सामाजिक रूप से लोगों के साथ संपर्क में रहते थे या नहीं, वे लोगों की बात किस तरह सुनते थे, अच्छी सलाह देते थे या नहीं, प्रेम और भावना का उनके जीवन में क्या महत्व था, जो भावनात्मक रूप से उनसे जुड़े थे उनके साथ कैसा संपर्क था. इन सारे सवालों के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि जो लोग सामाजिक रूप से दूसरों के साथ ज्यादा जुड़े हुए थे और लोगों की बात को भी गंभीरता से सुनते थे, उनका दिमाग बुढ़ापे तक तक बेहतर स्थिति में रहा. उनकी याददाश्त भी अच्छी थी

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