लखनऊ, एक सैनिक जो बार्डर पर खड़े होकर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देता है. लेकिन सिस्टम की हीलाहवाली से परेशान एक पूर्व सैनिक ने अपने अधिकारों के लिए 29 सालों तक संघर्ष करना पड़ा।
1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ चुके सचिच्दानंद शुक्ल तीन दशकों तक अपनी दिव्यांगता पेंशन पाने के लिए सिस्टम के खिलाफ जंग लड़ते रहे. आखिर एक वीर योद्धा लचर सिस्टम की ईंट से ईंट बजा दी. इस मामले में लखनऊ पीठ ने वयोवृद्ध पूर्व सेना के जवान को दिव्यांगता पेशन जारी करने के लिए सेना के मुख्यालय को आदेश कर दिया. पूर्व सैनिक ने इस मामले में दलील में कहा कि 9 साल के सेवाकाल में उनको मानसिक रूप से बीमार बताकर बिना दिव्यांगता पेंशन देते हुए घर भेज दिया था. उन्होंने अपनी यूनिट के अभिलेक रिकार्ड से भी संपर्क करने की कोशिस की लेकिन इस मामले में मुख्यालाय की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ पीठ ने क्योवृद्ध पूर्व सैनिक को दिव्यांगता पेंशन जारी करने का आदेश सेना मुख्यालय को दिया है. चार माह में आदेश का अनुपालन न करने पर सेना को आठ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा. देवरिया निवासी सच्चिदानंद शुक्ल वर्ष 1963 में सेना में भर्ती हुए थे. उन्होंने सन 1965 का युद्ध भी लड़ा और 16 वर्ष देश की सेवा करके 1979 में सेवानिवृत्त हो गए. सच्चिदानंद ने भी 1983 में रक्षा सुरक्षा कोर में भर्ती होकर मातृभूमि को अपनी सेवाएं दी।
हालांकि, करीब नौ वर्ष के सेवाकाल के बाद 1992 में सच्चिदानंद शुक्ल ने उनको मानसिक रूप से बीमार बताते हुए बिना दिव्यांगता पेंशन दिए घर भेज दिया. पूर्व सैनिक ने अपनी यूनिट के अभिलेख रिकार्ड से भी संपर्क किया, लेकिन उनके पत्रों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उन्होंने वर्ष 2019 में सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ बेंच में अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय के माध्यम से वाद दायर किया अधिकरण के न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश उमेश चंद्र श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य अभय रघुनाथ कार्वे की खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता ने दलील दी कि इतनी लंबी सेवा में बीमारी का होना स्वयं में एक प्रमाण है कि इसके लिए सैन्य सेवा उत्तरदायी है।
वहीं दूसरा स्पेशलिस्ट मेडिकल टीम ने ऐसा कोई साक्ष्य सेना के समर्थन में नहीं प्रस्तुत किया है जिससे यह साबित हो सके कि इसका संबध अनुवांशिकता से हो. खंडपीठ ने कहा कि बीमारी का लंबी सैन्य सेवा के बाद होना, उसके बारे में मेडिकल बोर्ड को कोई स्पष्टता न होना यह साबित करता है कि इस बीमारी के लिए सेना उत्तरदायी है।