आयरन लेडी इंदिरा गांधी के दृढ़ निश्चय और मजबूत फैसलों ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया, 19 जनवरी 1966 को संभाला था प्रधानमंत्री का पद

नई दिल्ली, 19 जनवरी 1966, ये कोई मामूली तारीख नहीं है. आज ही के दिन इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी आजाद भारत की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री बनी थीं।

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19 जनवरी का दिन भारत के राजनीतिक इतिहास में एक बड़ी जगह रखता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने वह कुर्सी संभाली जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी. वह 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनीं. इसके बाद फिर 1980 से 1984 तक इस पद (प्रधानमंत्री) को संभाला और मृत्यु तक इस पद पर रहीं।

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19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जन्मीं प्रियदर्शिनी को परिवार में शुरू से ही राजनीतिक माहौल देखने को मिला. 1955 में वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चयनित की गई. इसके बाद वह धीरे धीरे राजनीति की गहराई को समझने लगीं. मगर किसे पता था कि प्रियदर्शिनी आगे चलकर देश की बागडोर संभालेंगी. ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इंदिरा दृढ़ निश्चय और अपने इरादों की पक्की थीं. इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी को कुछ कठोर और विवादास्पद फैसलों के कारण भी याद किया जाता है।

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इंदिरा गांधी ने कई उपलब्धियां अपने नाम की तो कई दंश भी झेले. 1975 में आपातकाल की घोषणा और 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले उनके जीवन पर भारी पड़े. आपातकाल के बाद जहां उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी वहीं स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले की कीमत उन्हें अपने सिख अंगरक्षकों के हाथों जान देकर चुकानी पड़ी. इंदिरा गांधी को 5 फैसलों के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

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1.पीएम बनने के बाद इंदिरा गांधी ने कई बड़े फैसले लिए थे, उनमें एक बड़ा फैसला था बैंकों का राष्ट्रीयकरण. ये फैसला बहुत नाटकीय तरीके से लिया. 1966 में देश में बैंकों की केवल 500 के आसपास शाखाएं थीं. जिसका फायदा आमतौर पर धनी लोगों को ही मिलता था. लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों का फायदा आम आदमी को भी मिलना शुरू हुआ. उन्होंने बैंक में पैसे जमा करने शुरू किए. हालांकि उस समय इंदिरा के इस फैसले को सत्ता के केंद्रीकरण और मनमानी के तौर पर देखा गया।

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2. आयरन लेडी कही जाने वाली इंदिरा गांधी को कभी किसी से नहीं डरीं. भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान की कब्जा नीति शुरू हो गई थी. जिसके कारण बड़ी संख्या में बंगाली शरणार्थी भारत आने लगे. इंदिरा ने पाकिस्तान को चेतावनी दी. अमेरिका उस समय पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था लेकिन इंदिरा को न जो पाकिस्तान का डर था और न अमेरिका का. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान पर हमला करके उस इलाके को आजाद कराया और बांग्लादेश का उदय कराया. 1971 के 13 दिन के युद्ध में करीब 30 लाख लोगों की जान चली गई. अमेरिका भी इंदिरा के इस दबदबे के सामने मूक बन गया।

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3. 1971 में इंदिरा गांधी ने विपक्षियों की अपील ‘इंदिरा हटाओ’ के जवाब में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया. इसके तहत वित्त पोषण, ग्राम विकास, पर्यवेक्षण और कर्मिकरण आदि कार्यक्रम प्रस्तावित थे. यद्यपि ये कार्यक्रम गरीबी हटाने में असफल रहा लेकिन इंदिरा गांधी के इस नारे ने काम किया और उन्होंने चुनाव जीत लिया।

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4. पड़ोसी देश चीन परमाणु संपन्न हो चुका था. चीन से आसन्न खतरे से बचने के लिए श्रीमती गांधी ने परमाणु कार्यक्रम को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा. वैज्ञानिकों को लगातार उत्साहित करके वैज्ञानिक संस्थाओं को बढ़ावा दिया. इसके चलते मई 1974 में भारत ने पहली बार पोखरण में स्माइलिंग बुद्धा आपरेशन के नाम से सफलतापूर्वक भूमिगत परीक्षण किया. भारत ने साफ कर दिया था कि वो इसका प्रयोग केवल शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए किया है. इससे दुनियाभर में भारत की धाक जम गई।

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5. सत्ता संभालने के बाद इंदिरा गांधी ने भारत की दिशा और दशा ही बदल दी. आपातकाल का फैसला सबसे बड़ा और विवादास्पद रहा. साल 1971 में रायबरेली में उनके खिलाफ जब चुनावों में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगा तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1975 के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया. साथ ही इंदिरा पर 6 साल चुनाव लड़के लिए बैन कर दिया. विपक्ष ने मौके का फायदा उठाते हुए इंदिरा से इस्तीफा मांगा. इसके विपरीत इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा कर दी. प्रेस की आजादी पर रोक लग गई. कई बड़े फेरबदल हुए. इससे नाराज जनता ने उन्हें 1977 के चुनाव में हरा दिया।

 

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