डूब गए निवेशकों के 4 लाख करोड़ रुपये, Sensex और Nifty में आई जोरदार गिरावट

नई दिल्ली, इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध ने मार्केट में निवेश करने वालों में भय पैदा कर दिया. जिसका नतीजा यह हुआ कि आज Indian Stock Market के ओपेन होती ही लगभग एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. निफ्टी 50 19,653.50 के पिछले बंद के मुकाबले 19,539.45 पर खुला और 0.90 प्रतिशत गिरकर दिन के निचले स्तर 19,480.50 पर आ गया, जबकि सेंसेक्स 65,995.63 के पिछले बंद के मुकाबले 65,560.07 पर खुला और सोमवार के कारोबार में अब तक 0.85 प्रतिशत गिरकर दिन के निचले स्तर 65,434.61 पर आ गया.

हालांकि, बाद में मार्केट थोड़ा संभलता हुआ देखा गया. सुबह 9:50 बजे के आसपास सेंसेक्स 0.42 फीसदी गिरकर 65,719 पर था, जबकि निफ्टी 50 0.39 फीसदी गिरकर 19,576 पर था. बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स, जो शुरुआती सौदों में क्रमशः लगभग 1.5 प्रतिशत और 2 प्रतिशत गिरे. बीएसई पर कंपनियों का कुल मार्केट पूंजीकरण (एमकैप) पिछले सत्र के लगभग 320 लाख करोड़ से घटकर लगभग 316 लाख करोड़ हो गया, जिससे निवेशकों को लगभग 4 लाख करोड़ का नुकसान हो गया. मार्केट में सुधार के साथ, बीएसई एमकैप भी बाद में बढ़कर लगभग 317 लाख करोड़ हो गया

इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध मार्केट के लिए एक नई चिंता का विषय है. शनिवार को एक आश्चर्यजनक हमले में उसके लड़ाकों द्वारा गाजा की सीमा का उल्लंघन करने के बाद इज़राइल ने हमास के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, जिसमें लगभग 1,000 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए. रॉकेट हमले के बाद गाजा में कई इजराइलियों को बंधक बना लिया गया. अब तक का युद्ध इजराइल-फिलिस्तीन तक ही सीमित है लेकिन इसका व्यापक असर होने की संभावना है. जानकारों का मानना है कि भले ही फिलहाल घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि चीजें धीरे-धीरे कैसे आगे बढ़ती हैं. मार्केट में आई गिरावट पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि इजराइल-हमास संघर्ष ने मार्केट्स के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है. कोई नहीं जानता कि यह युद्ध किस तरफ जाएगा. मार्केट के दृष्टिकोण से, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इससे तेल आपूर्ति में बड़ी बाधा पैदा हो सकती है, जिससे भारत जैसे प्रमुख तेल आयातक देश प्रभावित हो सकते हैं. लेकिन अगर हमास का प्रमुख समर्थक ईरान युद्ध में शामिल हो जाता है, तो स्थिति बदल जाएगी. इससे तेल आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे कच्चे तेल में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे बड़ा रिस्क पैदा हो सकता है.

वीकेंड में इजरायल और फिलिस्तीन की हमास सेनाओं के बीच युद्ध के बाद सप्लाई में डिसरप्शन की चिंताओं के कारण कच्चे तेल की कीमतों में 4 प्रतिशत से अधिक का उछाल दर्ज किया गया, जिससे पूरे पश्चिम एशिया में राजनीतिक अनिश्चितता गहरा गई. तेल कार्टेल ओपेक द्वारा 5 अक्टूबर की बैठक में उत्पादन में कटौती को स्थिर रखने के प्रस्ताव के बाद पिछले सप्ताह कच्चे तेल की कीमतें साल के उच्चतम स्तर से लगभग 9 प्रतिशत कम हो गईं. हालांकि, यदि ईरान सक्रिय रूप से संघर्ष में शामिल हो जाता है, तो पश्चिम एशिया में लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं. अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका असर भारत के ट्रेड डेफिसिट, करेंट अकाउंट डेफिसिट और कुछ हद तक फिस्कल डेफिसिट पर भी पड़ेगा.

Related Posts