डुबोई भारत की प्रतिष्ठा ! इजराइल गये यूपी-बिहार के वर्कर्स निकले बेकार, अब दूसरे देशों से मंगाए जा रहे मजदूर

नई दिल्ली, गाजा में युद्ध शुरू होने के बाद मजदूरों की कमी को देखते हुए भारत से भेजे गये वर्कर्स को ना तो काम करना आता है, ना ही उनमें काम करने की क्वालिटी है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, कि जिन मजदूरों को इजराइल भेजा गया है, उनमें क्वालिटी और कौशल की कमी है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत और इजरायल के बीच द्विपक्षीय रोजगार योजना, जिसका मकसद भारतीय श्रमिकों को इजरायल के निर्माण क्षेत्र में आई मजदूरों की कमी को पूरा करना था, वो फेल होने के कगार पर पहुंच गई है।

द्विपक्षीय रोजगार योजना नाम का ये पहल, पिछले साल अक्टूबर में हमास के हमले के बाद फिलिस्तीनी श्रमिकों को इजरायल में काम करने से रोक दिए जाने के बाद शुरू की गई थी। पिछले साल गाजा युद्ध शुरू होने के बाद इजराइल में मजदूरों की भारी कमी हो गई, जिसे पूरा करने के लिए एक लाख भारतीय मजदूरों को इजराइल भेजा गया था।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि इस योजना से श्रमिकों की क्षमताओं के बारे में जो उम्मीद की गई थी, वो पूरी नहीं हो पाई हैं, जिसके बाद इन्हें निर्माण कार्य से हटा दिया है। हालांकि, इन मजदूरों को भारत के साथ अच्छे राजनयिक संबंधों को देखते हुए देश से बाहर तो नहीं निकाला गया है, लेकिन इन श्रमिकों को निर्माण क्षेत्र के बाहर अकुशल या इंडस्ट्रियल सेक्टर में फिर से नियुक्त करने की अनुमति दी गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि जिन मजदूरों को भर्ती किया गया था, उनमें से ज्यादातर मजदूरों को अलग अलग सरकारी चैनलों से भर्ती किया गया था, लेकिन भर्ती किए गए मजदूरों में ना ही काम करने का अनुभव है और ना ही उनमें काम करने का कौशल ही है, और इस अक्षमता ने इजराइली अधिकारियों के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।

इसके अलावा, इस स्थिति ने विदेशों में भारतीय श्रमिकों की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया है, जिसकी वजह से कई ठेकेदारों ने भारतीय श्रमिकों के वीजा और कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने शुरू कर दिए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल के बिल्डरों ने अब चीन, मोल्दोवा और उज्बेकिस्तान जैसे दूसरे देशों से कुशल मजदूरों को मंगाना शुरू कर दिया है। और ये स्थिति भारत के लिए शर्मिंदा करने वाला है। और सवाल उठते हैं, कि क्या अधिकारियों ने सिफारिश के आधार पर मजदूरों का चयन किया था, क्या मजदूरों के चमन में पैसों का खेल हुआ है, या फिर मजदूरों को भेजने में लापरवाही बरती गई है?

रिपोर्ट से पता चलता है, कि इजराइल भेजे गये कई मजदूरों की उम्र महज 20 साल के करीब है और उन्होंने कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कभी काम ही नहीं किया है। वहीं, इस योजना के तहत कई किसानों और बाल काटने वालों को इजराइल भेज दिया गया, जिन्होंने कभी हथौड़ा भी नहीं उठाया है।

इस परिस्थिति में भी इन मजदूरों को देश से बाहर नहीं निकालकर ऐसा लग रहा है, मानो इजराइल ने दोस्त भारत की लाज रख ली है। इजराइल की ‘जनसंख्या और आव्रजन प्राधिकरण’ ने एक असामान्य फैसला लेते हुए, नए द्विपक्षीय विदेशी निर्माण श्रमिकों को बुनियादी ढांचे और नवीनीकरण परियोजनाओं में नियोजित करने की अनुमति दी है। इसके अलावा, उन्होंने निर्माण क्षेत्र से भारतीय मजदूरों को औद्योगिक भूमिकाओं में ट्रांसफर करने की इजाजत दी है।

इस योजना के तहत भर्ती के दूसरे दौर के लिए अभी दोनों देशों में बातचीत चल रही है, हालांकि अभी तक कोई विशेष तिथि निर्धारित नहीं की गई है। भारत सरकार मानती है, कि इजरायली नियोक्ताओं की जरूरतों के साथ बेहतर तालमेल बिठाने के लिए उनकी भर्ती प्रक्रिया में सुधार की गुंजाइश है। यानि, भारत सरकार और अच्छे से जानने की कोशिश करेगी, कि इजराइली बिल्डर्स को किस तरह के मजदूर चाहिए और उसी आधार पर श्रमिकों के नये खेप को भेजा जाएगा।

यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय रोजगार योजनाओं में भारतीय कामगारों के कौशल को नौकरी की आवश्यकताओं के साथ मिलाने के महत्व को उजागर करती है। और नये मजदूरों को भेजे जाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, कि भर्ती किए गए लोगों के पास जरूरी क्वालिटी और तजुर्बा हो।

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