एंजायटी और डिप्रेशन जैसी दिक्कतों को आज भी कई लोग नहीं मानते. बहुत सारे लोगों के लिए इन चीजों का कोई अस्तित्व ही नहीं होता. बात अगर बच्चों में डिप्रेशन की आए तो लोग यह मानने का तैयार ही नहीं होते कि बच्चे भी अवसाद का शिकार हो सकते हैं लेकिन अब एक स्टडी में इस मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है जो कई लोगों को हैरान कर देगा.
दरअसल, शोधकर्ताओं का कहना है कि अवसाद का अनुभव करने वाली माताओं के बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ डिप्रेशन विकसित होने की संभावना अधिक होती है. उनके अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि प्री नेटल और पोस्ट नेटल डिप्रेशन महसूस करने वाली माताओं को इलाज की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक स्वस्थ पारिवारिक जीवन शैली बच्चों के लिए अवसाद के जोखिम को कम कर सकती है. आपको बता दें कि यह शोध यूनाइटेड किंगडम और उत्तरी अमेरिका के शोधकर्ताओं ने किया है. जानकारी के मुताबिक लगभग 16,000 मदर-चाइल्ड डायड्स से एकत्र किए गए डाटा की जांच की गई, जिसमें बच्चों की उम्र 12 वर्ष और उससे अधिक थी।
रिसर्च में पता चला है कि पेरीनेटल डिप्रेशन का अनुभव करने वाली माताओं के बच्चों में किशोरावस्था और वयस्कता में अवसाद विकसित होने का खतरा 70 प्रतिशत अधिक होता है. आपको बता दें कि जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक नए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है. अध्ययन में पाया गया कि जिन किशोर लड़कों की माताओं ने पेरीनेटल अवसाद का अनुभव किया, उनकी तुलना में लड़कियों में अवसाद का खतरा 6 प्रतिशत अधिक था।
कनेक्टिकट और न्यूयॉर्क में कार्यालयों से जुड़े एक मनोवैज्ञानिक और बाल चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रोसेन कैपन्ना-हॉज ने कहा, ‘पेरीनेटल अवसाद के बारे में पर्याप्त बात नहीं की गई है और इसके साथ अभी भी बहुत सारे स्टिग्मा जुड़े हुए है’ हांलाकि, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, यह मूड डिसऑर्डर हल्के से लेकर गंभीर रुप में होता है और इसका इलाज किया जा सकता है।