स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर किसानों को है MSP की दरकार

नई दिल्ली, अपनी मांगों को मनवाने के लिए किसानों का आंदोलन देश में एक बार फिर जारी है. पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के किसान दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

दिल्ली के आसपास के इलाकों में पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्सेज की भारी तैनाती की गई है और किसानों को राजधानी में प्रवेश करने से रोका जा रहा है.

 

किसानों का कहना है कि वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से बातचीत की मांग की है. इस पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने किसानों को आश्वस्त करने का प्रयास किया है कि सरकार उनकी बात सुनने को तैयार है और उनकी अधिकांश मांगों को मान्यता दी है.

लेकिन किसानों को इस पर भरोसा नहीं है और वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए अडिग हैं. तो आखिरकार स्वामीनाथन आयोग कौन है और इसने किसानों के लिए क्या सुझाव दिए हैं? और क्यों इन सुझावों को अमल में लाना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल है?

 

स्वामीनाथन आयोग का नाम ‘नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स’ है, जिसका गठन नवंबर 2004 में किया गया था. इस आयोग के अध्यक्ष हरित क्रांति के पितामह और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन थे. इस आयोग का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति और खेती की उपज को बेहतर बनाना था. इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2006 में पेश की, जिसमें किसानों के जीवन को सुधारने के लिए कई तरह के सुझाव दिए गए थे.

आयोग की सिफारिशें

इनमें सबसे महत्वपूर्ण सुझाव एमएसपी का था, जिसके अनुसार किसानों को अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उनके उत्पादन लागत के 50% से अधिक मिलना चाहिए. ताकि छोटे किसानों को फसल का उचित मुआवजा मिल सके.

आयोग ने बीज-कर्ज को लेकर भी कई खास सुझाव दिए थे. इनमें किसानों को गुणवत्ता वाले बीज कम दामों पर उपलब्ध कराने, किसानों को मिलने वाले कर्ज का प्रवाह बढ़ाने, और जमीन का सही बंटवारा करने की सिफारिशें शामिल थीं. इसके अलावा, आयोग ने किसानों को बीमा, सिंचाई, भूमि सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी कई योजनाओं का प्रस्ताव किया था.

किसानों की आत्महत्या पर लगाम लगाने के लिए आयोग ने राज्य स्तर पर किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने, वित्त-बीमा की स्थिति मजबूत करने, महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने, और किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाने की सिफारिशें की थीं.

जमीन बंटवारे पर भी आयोग ने चिंता जताई थी. 1991-92 में 50 फीसदी ग्रामीण लोगों के पास देश की सिर्फ तीन फीसदी जमीन थी. आयोग ने बेकार पड़ी जमीन को भूमिहीनों को देने और भूमि सुधार पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी थी.

आयोग की सिफारिशों को लागू करने में क्या है चुनौती

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में केंद्र सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. सबसे बड़ी चुनौती एमएसपी की गारंटी का मुद्दा है, जिसके लिए किसानों ने जोरदार आंदोलन किया है.

अभी फसलों की MSP कैसे तय होती है?

केंद्र के अलावा राज्य सरकारों के पास भी एमएसपी लागू करने के अधिकार हैं. इसके लिए सरकार ने साल 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) का गठन किया था. CACP हर साल रबी और खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है.

 

एमएसपी कानून को लेकर विवाद अभी सुलझ नहीं सका है. केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने आंदोलनरत किसानों से चर्चा की है, लेकिन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी वाला कानून सरकार बिना सलाह किए जल्दबाजी में लाने पर तैयार नहीं है. उन्होंने किसान समूहों से सरकार के साथ रचनात्मक चर्चा करने की भी बात की लेकिन किसानों की ओर से ये बातचीत बेनतीजा ही रही और उन्होंने मंगलवार को ‘दिल्ली चलो’ मार्च शुरू कर दिया.

 

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