नई दिल्ली, अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर में 22 जनवरी को मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। जैसे-जैसे समारोह का दिन नजदीक आ रहा है भारतीय जनता पार्टी (BJP) सोशल मीडिया पर इसे लेकर अधिक सक्रिय दिखने लगी है।
बुधवार (10 जनवरी) की सुबह भाजपा ने अपने आधिकारिक एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल से एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, ‘1556 ईसवी में बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनवाई थी। रामराज्य – संघर्ष से परिणाम तक के अध्याय 1 अमावस्या में देखिए, कैसे 20वीं सदी में मंदिर निर्माण के लिए बजी संघर्ष की अंतिम रणभेरी…’
थोड़ी ही देर में यह वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया। कई इतिहासकारों ने भाजपा के पोस्ट पर कमेंट कर बताया कि इसमें तथ्यात्मक गलती है। इतिहासकार रुचिका शर्मा ने सवाल उठाया कि बाबर की मौत 1530 में ही हो गई थी, फिर उसने 1556 में मंदिर कैसे ध्वस्त किया?
रूचिका शर्मा का कमेंट का समर्थन करते हुए एक अन्य इतिहासकार साकिब सलीम ने तंजिया लहजे में लिखा, ‘इस देश में इतिहास का गंभीरता से अध्ययन करने वाले लोगों को छोड़कर हर कोई इतिहासकार है।’ इस तरह की प्रतिक्रिया के बाद भाजपा ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।
बाबर ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी या नहीं, इसे लेकर पहले भी विवाद हो चुका है। हिंदुत्ववादियों के दावों को पहली गंभीर चुनौती 1990 में चार भारतीय इतिहासकारों ने दी थी।
मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने पर चार इतिहासकारों ने उठाए सवाल
साल 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने हिंदू और मुस्लिम पक्षों से सबूतों का आदान-प्रदान करने के लिए कहा ताकि दोनों पक्ष समझौते पर आगे बढ़ने के लिए एक-दूसरे की स्थिति को समझ सकें।
यह पहली बार था कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का प्रतिनिधित्व करने वाले राम शरण शर्मा (R.S Sharma), द्विजेंद्र नारायण झा (D.N. Jha), एम. अख्तर अली (M.A. Ali) और सूरज भान (Suraj Bhan) जैसे इतिहासकारों ने एक स्वर में यह कहा कि अयोध्या में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद नहीं बनाई गई थी।
इन चारों इतिहासकारों ने सरकार को ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ नामक एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें इस मान्यता को ख़ारिज किया गया था कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था यानी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
साल 2009 में फ्रंटलाइन को दिए एक इंटरव्यू में प्रख्यात इतिहासकार डीएन झा ने अपनी रिपोर्ट पर बात की थी, ‘बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल शासक बाबर के राज्य के एक सैन्य अधिकारी मीर बाकी ने 1528-29 में कराया था। संघ परिवार (RSS) का मुख्य तर्क यह है कि मस्जिद राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी और यह राम का जन्म स्थान था। लेकिन सच यह है कि 1948-49 में गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्रित्व काल (संयुक्त प्रांत) और नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में मूर्तियों को मस्जिद में रखकर, चमत्कारिक घटना बताया गया था। तब से लेकर 1970 के दशक के मध्य तक, किसी ने इस विवाद के बारे में कुछ नहीं सुना। विश्व हिंदू परिषद के अस्तित्व में आने के बाद काशी, मथुरा और अयोध्या को तीर्थ स्थल बताना शुरू किया गया।’
डीएन झा ऐतिहासिक ग्रंथों और साक्ष्यों के आधार पर दावा करते हैं कि पहले राम जन्मभूमि का बहुत महत्व नहीं था। वह कहते हैं, ‘स्कंद पुराण एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ। इस ग्रंथ में घग्गर नदी और सरयू नदी के संगम पर स्वर्गद्वार नामक स्थान से राम के स्वर्गारोहण के बारे में 100 छंद में लिखा गया है। लेकिन ग्रंथ में राम के जन्म के बारे में केवल 10 श्लोक ही हैं। इससे पता चलता है कि उनका जन्मस्थान महत्वपूर्ण नहीं था बल्कि महत्वपूर्ण वह स्थान था जहाँ से वे स्वर्ग गए थे। केवल स्वर्गद्वार ही तीर्थ था।’
झा आगे कहते हैं, ‘भट्ट लक्ष्मी धर द्वारा लिखित 11वीं शताब्दी के ग्रंथ कृत्यकल्पतरु में विस्तृत से तीर्थस्थलों की सूची दी गई है। यह बहुत लंबी सूची है। लेखक गढ़वाल साम्राज्य में मंत्री थे, जिसका उस समय अयोध्या पर भी शासन था। उन्होंने तीर्थविवेचन कांड [किताब में तीर्थस्थलों को समर्पित एक खंड] में तीर्थयात्रा के केंद्र के रूप में अयोध्या का उल्लेख नहीं किया गया है।’
तुलसीदास ने नहीं किया मंदिर तोड़ने का जिक्र
डीएन झा तुलसीदास रचित रामचरितमानस का उदाहरण देते हुए बताते हैं, ‘वह राम और अयोध्या के बारे में लिखते हैं लेकिन यह कभी नहीं कहते कि राम मंदिर तोड़ा गया। अन्य प्रकार के पुरातात्विक साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि पूरे उत्तर भारत में 17वीं सदी के अंत से 18वीं सदी की शुरुआत तक विशेष रूप से राम को समर्पित कोई मंदिर नहीं था। दक्षिण भारत में आप इन्हें चोल काल (10वीं-12वीं शताब्दी) से पाते हैं, लेकिन उत्तर भारत में नहीं। 12वीं शताब्दी के राम के दो या तीन मंदिर मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में नहीं, बिहार में नहीं, उड़ीसा में भी नहीं। 17वीं शताब्दी में उत्तर भारत में राम मंदिरों का प्रचलन आम हुआ।’
अयोध्या जैन और बौद्ध धर्मों के लिए महत्वपूर्ण थी- इतिहासकार
अयोध्या को बौद्ध और जैन धर्म के लिए प्रमुख स्थल बताते हुए प्रोफेसर झा कहते हैं, ‘वास्तव में अयोध्या जैन और बौद्ध धर्म जैसे अन्य धर्मों के लिए भी महत्वपूर्ण थी। चीनी तीर्थयात्री जुआन झांग (जिन्होंने 630 ई. के आसपास गुप्त काल के दौरान उपमहाद्वीप का दौरा किया था) ने दर्ज किया है कि वहां लगभग 100 बौद्ध मठ थे और देवों (ब्राह्मण देवताओं) के केवल 10 स्थान थे। विष्णु स्मृति में भी तीसरी-चौथी शताब्दी के आरंभ में 52 तीर्थस्थलों की सूची दी गई है, लेकिन इसमें अयोध्या का नाम नहीं है। मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं, भले ही तर्क के लिए, वह यह है कि यदि अयोध्या में कोई मंदिर इतना महत्वपूर्ण था, तो 1528 में मस्जिद बनाए जाने से पहले के साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य में मौजूद होना चाहिए था। कम से कम इसका अस्तित्व 11वीं-12वीं शताब्दी में होना चाहिए था।’