नई दिल्ली, सूर्य अगले 2 साल में यानि कि 2025 में सौर अधिकतम में पहुंचने वाला है. सूर्य अपने वर्तमान के सोलर चक्र के 11वें वर्ष में पहुंच जाएगा जिसके बाद से पृथ्वी पर ‘सौर अधिकतम’ की घटना होती है.
मालूम हो कि ‘सौर अधिकतम’ सबसे बड़ी सूर्य गतिविधि है जिसमें बड़ी संख्या में सनस्पॉट दिखाई देते हैं, और सौर विकिरण का उत्पादन लगभग 0.07% बढ़ता है. इसके वजह से वजह से सूर्य की ऊर्जा काफी बढ़ जाती है और पृथ्वी की वैश्विक जलवायु काफी प्रभावित होती है. लेकिन इस बार की ‘सौर अधिकतम’ काफी खतरनाक होने वाला है.
सूर्य की मजबूती से पूरे धरती के इंटरनेट का सर्वनाश हो सकता है. वाशिंगटन पोस्ट में ऐसी ही खबर छपी थी. हालांकि, 2025 तक सौर तूफ़ान की वजह से इंटरनेट की तबाही पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अभी तक टिपण्णी नहीं की है.
सौर अधिकतम वह समयावधि है जिसके दौरान सूर्य चरम सौर गतिविधि का अनुभव करता है और इसका चुंबकीय क्षेत्र अपने सबसे मजबूत स्थिति में पहुंच जाता है. सौर चक्रों, आमतौर पर 11 वर्षों तक चलते हैं, लेकिन ‘सौर अधिकतम’ लगभग प्रत्येक चक्र के मध्य में होता है. इस दौरान, सौर ताकत इतना बढ़ जाता है कि बड़े पैमाने पर सौर तूफ़ान, सौर विस्फ़ोट और सूर्य से ताकतवर किरणे निकलने लगती हैं. इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है.
वैज्ञानिकों ने बताया कि इसके प्रभाव इतने विनाशकारी साबित हो सकते हैं कि पृथ्वी पर रेडियो संचार, पावर ग्रिड, इंटरनेट की सेवाएं बाधित हो सकते हैं. यहां तक कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य परिणाम भी हो सकता है. हालांकि, पृथ्वी पर व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को सौर अधिकतम के किसी भी प्रभाव का अनुभव होने की संभावना नहीं है.
अभी तक अस्पष्ट है कि 2025 में सौर तूफ़ान का ग्लोबल इंटरनेट पर को प्रभावित करेगा. लेकिन इतिहास कि घटनाओं पर नजर डालें तो इस संभावना से नाकारा जा सकता है. 1859 की कैरिंगटन घटना जिसके वजह से टेलीग्राफ लाइनों में चिंगारी भड़क उठी थी, जिससे ऑपरेटरों को करंट लग गया था. इसके अलवा, 1989 में एक बड़े सौर तूफान ने क्यूबेक पावर ग्रिड को घंटों तक बाधित कर दिया था.
वहीं, वाशिंगटन पोस्ट की मानें तो सौर अधिकतम की चिंताओं को नाकारा नहीं जा सकता है. ये पृथ्वी की बुनियादी ढांचे को प्रभावित करती है. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान की प्रोफेसर संगीता अब्दु ज्योति ने बताया कि, ‘हमने पहले ऐसी किसी घटना का अनुभव नहीं किया है, इसलिए कह नहीं सकते हैं कि इसका पृथ्वी की बुनियादी ढांचा पर कैसा प्रभाव पड़ने वाला है.’