नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री शुक्रवार को केदारनाथ धाम का दौरा करने वाले हैं. इसके लिए तैयारियों पूरे जोरों पर हैं. हालांकि, पीएम के दौरे से पहले वहां के पुरोहित समाज ने प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध करने का ऐलान किया.
पुरोहित समाज ने चार धाम देवास्थानम बोर्ड को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. इसके जरिए मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में किया जाएगा. पिछले चार महीनों से इसे लेकर विरोध किया जा रहा है. यही वजह है कि आनन-फानन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को पीएम मोदी की यात्रा से एक दिन पहले धाम की यात्रा करनी पड़ी, ताकि पुरोहित समाज से बात की जा सके.
सूत्रों के मुताबिक, सीएम धामी ने पुरोहितों के साथ बंद कमरे में चर्चा की है. नाराज पुरोहितों को मनाने पहुंचे सीएम ने उन्हें आश्वस्त किया है कि उनके पक्ष में ही फैसला लिया जाएगा. सीएम ने पुरोहितों से कहा है कि वह खुद प्रधानमंत्री से देवास्थनम बोर्ड को भंग करने की बात करने वाले हैं. चार धाम देवास्थनम बोर्ड को भंग करने की बात को खुलकर नहीं कहा गया है. हालांकि, जिस तरह से सीएम धामी ने पीएम के दौरे से पहले धाम की यात्रा की और फिर पुरोहितों के साथ चर्चा की. इससे ये बात तो स्पष्ट हो रही है कि केदारनाथ का दौरा दिल्ली में भाजपा नेतृत्व से बातचीत के बाद लिया गया है. माना जा रहा है कि 30 नवंबर तक बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा.
दरअसल, पिछले साल जनवरी महीने में उत्तराखंड की त्रिवेंद सिंह रावत सरकार ने एक बड़ा फैसला किया है. तत्कालीन राज्य सरकार ने ऐलान किया कि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत प्रदेश के 51 मंदिरों का प्रबंधन सरकार करेगी. इसके लिए ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ बनाया गया. इस ऐलान के तुरंत बाद ही मंदिरों के पुरोहितों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. सरकार के इस कदम को हिंदुओं की आस्था में दखल के तौर पर देखा गया. साधु-संत और पुरोहितों का समाज सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया. पिछले साल से ही इस फैसले के विरोध में राज्य में आंदोलन किया जा रहा है.
पुरोहितों का कहना है कि ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ के जरिए हिंदू धर्मस्थल मंदिरों पर सरकारी कब्जा करने की कोशिश की जा रही है. बोर्ड की स्थापना से पहले तक पुरोहितों द्वारा इन मंदिरों की देखभाल की जाती थी. भक्तों द्वारा मंदिरों में दिए जाने वाले चढ़ावे का जिम्मा भी पुरोहितों के हाथों में होता था. यहां असल चिंता की बात ये है कि बोर्ड के गठन के बाद से मंदिरों की जिम्मेदारी पुरोहितों के हाथों में है. मगर मंदिरों में होने वाले चढ़ावे का जिम्मा सरकार के हाथों में चला गया है और अब सरकार हर चढ़ावे का ब्यौरा रख रही है. पुरोहित इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि बोर्ड के जरिए सरकार मंदिर की संपत्ति को भी कब्जे में कर सकती है