नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कोवैक्सीन टीके की दोनों डोज लगवा चुके लोगों को दोबारा कोविशील्ड का टीका लगाने का केंद्र को आदेश देकर लोगों की जिंदगी से नहीं खेल सकता।
शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया है कि कोवैक्सीन का टीका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से स्वीकृत नहीं है और यह टीका लगवाने वालों को विदेश यात्रा की अनुमति हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘केंद्र को लोगों का पुन: टीकाकरण करने का आदेश देकर हम लोगों की जिंदगी से नहीं खेल सकते। हमारे पास कोई आंकड़े नहीं हैं। हमने अखबारों में पढ़ा है कि भारत बायोटेक ने मान्यता के लिए डब्ल्यूएचओ में आवेदन दाखिल किया है। हमें डब्ल्यूएचओ के जवाब का इंतजार करना चाहिए। हम इस मामले पर दीवाली की छुट्टियों के बाद विचार करेंगे।’
व्यक्तिगत रूप से पेश हुए वकील कार्तिक सेठ ने तर्क दिया कि विदेश जाने के इच्छुक छात्रों और लोगों को प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है, क्योंकि कोवैक्सीन को डब्ल्यूएचओ से मान्यता नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था के तहत कोवैक्सीन का टीका लगाने वाला व्यक्ति कोविशिल्ड वैक्सीन प्राप्त करने के लिए कोविन पोर्टल पर अपना पंजीकरण नहीं करा सकता है और इस संबंध में केंद्र को निर्देश जारी किया जा सकता है।
इस पर पीठ ने कहा कि हम बिना किसी डेटा के कोई और वैक्सीन लगाने का निर्देश नहीं दे सकते। हम आपकी चिंता को समझते हैं, डब्ल्यूएचओ के फैसले की प्रतीक्षा कीजिए। कोर्ट ने कहा कि इस बात की भी चिंता है कि जनहित याचिका की आड़ में प्रतियोगी मुकदमे का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं।
सेठ ने कहा कि उनकी याचिका विशुद्ध रूप से एक जनहित याचिका है क्योंकि पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने वाले छात्रों को विभिन्न देशों में प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है। दायर याचिका में कहा गया है कि कोवैक्सीन को रोल आउट करने के समय सरकार ने जनता को इस बात से अवगत नहीं कराया कि यह डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित नहीं है।