नई दिल्ली, देश में संभल की जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ की दरगाह में हिंदू मंदिरों के दावों के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व का एक चौंकाने वाले बयान सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज आरएफ नरीमन ने बाबरी मस्जिद को लेकर बड़े खुलासे किए हैं.
एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर असहमति जताते हुए कहा कि 2019 के ऐतिहासिक फैसले की आलोचना की. 2019 में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की अनुमति दी गई थी. उन्होंने कहा, ‘मेरी राय में, न्याय का एक बड़ा मजाक यह है कि इन निर्णयों में धर्मनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया.’
‘भ्रामक फैसले’
प्रथम न्यायमूर्ति ए.एम. अहमदी स्मारक व्याख्यान में ‘धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान’ विषय पर बोलते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों बात की. उन्होंने बताया, ‘सबसे पहले इन्होंने लिब्रहान आयोग का गठन किया, जिसने 17 वर्षों बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट दी. दूसरे, इन्होंने और साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति संदर्भ दिया, ताकि निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर था या नहीं. मैं कहूंगा कि यह शरारतपूर्ण प्रयास था और भ्रामक था.’
‘कानून सेकुलरिज्म के खिलाफ’
Live Law पर छपी खबर के मुताबिक, इसके बाद पूर्व जज ने बाबरी मस्जिद मुद्दे से निपटने वाले न्यायालय के निर्णयों का हवाला दिया. डॉ. एम. इस्माइल फारुकी बनाम भारत सरकार (1994) का जिक्र किया, जिसमें अयोध्या क्षेत्र अधिग्रहण अधिनियम, 1993 की वैधता और राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई हुई थी. इसमें यह तय करने की कोशिश की गई थी कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर था या नहीं? यहां न्यायालय ने माना कि केंद्र सरकार द्वारा 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण वैधानिक रिसीवरशिप का एक प्रयोग था. हालांकि, न्यायमूर्ति अहमदी ने असहमति जताते हुए कहा कि यह कानून सेकुलरिज्म के खिलाफ है.
‘विध्वंस को अवैध मानने के बावजूद मंदिर का निर्माण’
न्यायमूर्ति नरीमन ने राम जन्मभूमि मामले (2019) में अंतिम फैसले का भी विश्लेषण किया, जिसमें तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित भूमि राम मंदिर के निर्माण के लिए सौंप दी जानी चाहिए. साथ ही, न्यायालय ने कहा कि मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ का वैकल्पिक भूखंड आवंटित किया जाना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कानून का घोर उल्लंघन था. 2019 के फैसले का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति नरीमन ने मस्जिद के विध्वंस को अवैध मानने के बावजूद विवादित भूमि को राम मंदिर के लिए देने के न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क पर असंतोष व्यक्त किया. न्यायमूर्ति नरीमन ने यह भी उल्लेख किया कि बाबरी विध्वंस की साजिश से संबंधित आपराधिक मामले में, जिस न्यायाधीश ने सभी को बरी किया था, उसे सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश का उप-लोकायुक्त नियुक्त किया गया था. उन्होंने दुख जताते हुए कहा, ‘हमारे देश में यही स्थिति है.’
अयोध्या मामले में सकारात्मक बात
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि अयोध्या मामले में आए फैसले में एक सकारात्मक बात यह है कि इसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को बरकरार रखा गया है. न्यायमूर्ति नरीमन ने मुस्लिम धार्मिक संरचनाओं के नीचे हिंदू मंदिरों का दावा करते हुए मुकदमा दायर करने की हालिया प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए, देश भर के न्यायालयों के लिए पूजा स्थल अधिनियम 1991 के आवेदन पर बाबरी-अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के 5 पृष्ठों पर भरोसा करने की आवश्यकता को रेखांकित किया.