लखनऊ, उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 186 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा में बड़ा खेल सामने आया है. परीक्षा के बाद हर पांचवें पद पर सचिवालय के अधिकारियों और नेताओं के रिश्तेदारों को नियुक्ति दे दी गई. सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हीं अधिकारियों की निगरानी में दो राउंड की परीक्षा भी संपन्न करवाई गई।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बे सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह तो ‘चौंकाने वाला घोटाला है’. साथ हो कहा कि कोर्ट ने अधिकारियों की भाई भतीजावाद वाली निष्ठा पर भी सवाल खड़े किये.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गौरतलब है कि यूपी विधान परिषद में 186 पदों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित की गई थी. इसमें कुल ढाई लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. रिपोर्ट के मुताबिक जिन्हें नियुक्ति दी गई उनमें तत्कालीन उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के जनसंपर्क अधिकारी और उनके भाई, एक मंत्री का भतीजा, विधान परिषद सचिवालय प्रभारी का बेटा, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, संसदीय कार्य विभाग प्रभारी के बेटा और बेटी, एक उप लोकायुक्त का बेटा और दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व स्पेशल ड्यूटी अधिकारी के बेटे शामिल हैं. इतना ही नहीं सफल अभ्यर्थियों के लिस्ट में दो प्राइवेट फर्म TSR डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदार भी शामिल हैं.
कैसे खुला मामला
मामला तब खुलकर सामने आया जब 2021 तीन असफल अभ्यर्थियों ने इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. इसके इस मामले से जुड़ी कई अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुई. 18 सितंबर 2023 को हाई कोर्ट ने दो याचिकाओं को जोड़ते हुए इन याचिकाओं को जनहित याचिका में बदल दिया और फिर दो जजों की बेंच को सुनवाई के लिए भेज दिया. सुनवाई के दौरान कोर्ट भी मामले को देखकर अचंभित रह गया. हाईकोर्ट ने इसे चौंकाने वाला घोटाला करार देते हुए जांच सीबीआई को सौंप दी. जिसके खिलाफ यूपी विधान परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी. अब इस मामले की सुनवाई 6 जनवरी 2025 को होगी.
नियमों में किया गया संशोधन
बता दें कि 2016 तक सचिवालय में भर्ती यूपी लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाती थी. लेकिन इसी साल नियमों में संशोधन उत्तर प्रदेश विधानसभा और 2019 में उत्तर प्रदेश बिधान परिषद ने खुद भर्ती परीक्षा आयोजित करवाने का फैसला लिया. हाईकोर्ट ने इस पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि क्यों नियमों में संशोधन कर चयन एजेंसी को हटाया गया और बाहरी एजेंसी को दिया गया? यह काफी चौंकाने वाला निर्णय है.
राजनेताओं के करीबियों को भी मिली नौकरी
गौरतलब है कि इस भर्ती में राजनेताओं के करीबियों को भी तरजीह दी गई. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू के भतीजे की विधानसभा में RO के पद पर नियुक्ति हुई है. इसके अलावा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के PRO की नियुक्ति विधानपरिषद के प्रकाशन विभाग में हुई. हालांकि, इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस के सवाल के जवाब में हृदयनारायण दीक्षित ने बताया कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी. वह पहले उनके साथ थे, लेकिन बाद में परिषद सचिवालय में उनकी नियुक्ति हुई.