नई दिल्ली, आज पूरे देश में दलित संगठनों द्वारा एसी-एसटी एक्ट के समर्थन में भारत बंद आंदोलन को आयोजित किया गया है। इस हड़ताल के समर्थन में विपक्ष खुलकर सामने आया है जिसमें क्षेत्रियों दलों से लेकर राष्ट्रीय दल तक शामिल है।
एक ओर जहां कांग्रेस, बीएसपी और आरजेडी ने इस विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया है, वहीं, समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने बुधवार को आंदोलन के समर्थन में बयान दिया। उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण श्रेणियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बुलाए गए ‘भारत बंद’ को अपना समर्थन दिया।
उन्होंने कहा कि आरक्षण की रक्षा के लिए जन आंदोलन एक सकारात्मक प्रयास है और यह शोषितों और वंचितों में नई चेतना पैदा करेगा। सपा प्रमुख ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “आरक्षण की रक्षा के लिए जन आंदोलन एक सकारात्मक प्रयास है। यह शोषितों और वंचितों में नई चेतना पैदा करेगा और आरक्षण के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के खिलाफ जनशक्ति का कवच साबित होगा। शांतिपूर्ण आंदोलन एक लोकतांत्रिक अधिकार है।”
अखिलेश यादव ने कहा कि अगर सरकार घोटालों और घोटालों के जरिए संविधान और लोगों के अधिकारों से छेड़छाड़ करती है तो जनता को सड़कों पर उतरना होगा। उन्होंने कहा, “बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने पहले ही चेतावनी दी थी कि संविधान तभी कारगर होगा जब उसे लागू करने वालों की नीयत सही होगी। जब सत्ता में बैठी सरकारें धोखाधड़ी, घोटाले और घपलेबाजी करके संविधान और उसके द्वारा दिए गए अधिकारों से छेड़छाड़ करेंगी, तो जनता को सड़कों पर उतरना पड़ेगा। जनांदोलन बेलगाम सरकार पर लगाम लगाते हैं।”
दरअसल, आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में ‘आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति’ आज एक दिन का भारत बंद कर रही है।
इस भारत बंद विरोध प्रदर्शन का बसपा ने भी समर्थन किया है। बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने फैसले के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश दिखाया और कहा, इन समूहों के लोगों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश है। मायावती ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “बीएसपी भारत बंद का समर्थन करती है क्योंकि 1 अगस्त 2024 को एससी/एसटी और क्रीमी लेयर के उप-वर्गीकरण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों द्वारा आरक्षण के खिलाफ साजिश और इसे अप्रभावी बनाने और अंततः इसे समाप्त करने के लिए उनकी मिलीभगत है।”
गौरतलब है कि 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्यों के पास एससी और एसटी को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार है और कहा कि संबंधित प्राधिकारी, यह तय करते समय कि क्या वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है, मात्रात्मक प्रतिनिधित्व के आधार पर नहीं बल्कि प्रभावी प्रतिनिधित्व के आधार पर पर्याप्तता की गणना करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत के फैसले से फैसला सुनाया कि एससी और एसटी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति है। मामले में छह अलग-अलग राय दी गईं।
यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच ने सुनाया, जिसने ईवी चिन्नैया मामले में पहले के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है क्योंकि एससी/एसटी समरूप वर्ग बनाते हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा बेंच में जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे।
जस्टिस बीआर गवई ने सुझाव दिया कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से भी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति विकसित करे ताकि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के लाभ से बाहर रखा जा सके। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताते हुए कहा कि वह बहुमत के फैसले से असहमत हैं कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति है।