आकाशवाणी लखनऊ द्वारा काकोरी ट्रेन एक्शन के 100वें वर्ष के उपलक्ष्य में मनाया गया संगीतोत्सवः ज़श्न-ए-आज़ादी’

लखनऊ, देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिष्ठित कलाकारों ने राजधानी में देशभक्ति के रंगों में रंगे संगीत से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और श्रोताओं में जोश भर दिया। आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र ने स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर एवं काकोरी ट्रेन एक्शन के 100वें वर्ष के उपलक्ष्य में शनिवार की शाम उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सहयोग से देशभक्ति की रचनाओं को समर्पित ‘संगीतोत्सवः ज़श्न-ए-आज़ादी’ मनाया। सभी कलाकारों ने अकादमी के सभागार में संगीत की विभिन्न विधाओं और शैलियों में देशभक्ति की रचनाएं प्रस्तुत की। स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ी कजरी, दादरा, ख्याल और ध्रुपद की बंदिशों के गायन एवं नृत्य प्रस्तुति से यह संगीतोत्सव अविस्मरणीय बन गया।

आकाशवाणी लखनऊ की कार्यक्रम प्रमुख सुश्री मीनू खरे ने स्वागत भाषण में कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में काकोरी ट्रेन एक्शन एक ऐसी घटना थी जिसने अंग्रेज सरकार की चूलें हिला दीं। इस मौके पर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सचिव श्री शौक़त अली ने भी स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए कहा कि ये पहली बार है जब आकाशवाणी लखनऊ और उर्दू अकादमी एक साथ मिलकर कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं।

संगीत उत्सव में सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका विदुषी दिलराज कौर ने लंबे समय बाद लखनऊ में संगीत की प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि मेरे जीवन और संगीत यात्रा में लखनऊ का विशेष महत्त्व है। यहीं मैंने भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय (तब भातखंडे संगीत संस्थान) से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। अपने कार्यक्रम में उन्होंने डॉ0 हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित सरस्वती वंदना, दिगम्बर नास्वा द्वारा रचित ‘हर धड़कन है वतन के लिए’, ‘तू न रोना, तू है भगत सिंह की माँ’, मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल ‘नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल’ से सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ संगत में श्री रतनेश मिश्र तबले पर, श्री गोपाल गोस्वामी गिटार पर, श्री सचिन चौहान कीबोर्ड पर और श्री कृष्ण स्वरूप ऑक्टोपैड पर थे।

संगीत उत्सव के कार्यक्रमों का आरंभ लखनऊ में जन्में और मुंबई में रह रहे बांसुरी वादक पंडित सुनील कांत गुप्ता के बांसुरी वादन से हुआ। बांसुरी की मधुर ध्वनि में वंदे मातरम के वादन से उत्सव के संगीत कार्यक्रमों का आगाज उन्होंने किया। तत्पश्चात राग ‘देस’ में झपताल और तीन ताल में दो रचनाएं पेश कीं। वर्षा ऋतु के अनुकूल उन्होंने कजरी प्रस्तुत की और कार्यक्रम का समापन बंगाल की लोकधुन भटियाली से किया। तबले पर उनका साथ पंडित अरुण भट्ट ने दिया जबकि तानपूरे पर सुश्री स्नेहिल श्रीवास्तव एवं डॉक्टर प्रतिभा मिश्र रहीं।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्राचीनतम शैली ध्रुपद की प्रस्तुति कानपुर के ध्रुपद गायक पंडित विनोद कुमार द्विवेदी एवं श्री आयुष द्विवेदी द्वारा की गई। अपने ध्रुपद गायन की शुरुआत पिता-पुत्र ने राग ‘यमन’ में ‘नमों राष्ट्रदेव भारत’ से किया। राग ‘यमन’ के उपरांत उन्होंने भाव प्रधान गीत ‘शहीदों नमन है तुम्हें बार बार’ प्रस्तुत किया तथा कार्यक्रम का समापन द्रुत सूल ताल में ओजपूर्ण राग ‘देस’ में ध्रुपद ‘भारत पुण्य धरा’ से किया । ध्रुपद गायन के इस कार्यक्रम में संगत में पखावज पर पंडित राजकुमार झा एवं श्री वैभव रामदास , तबले पर श्री शुभम वर्मा रहे जबकि तानपुरा एवं सहगायन में आशुतोष पांडेय, कृति गुप्ता एवं आदर्श गुप्ता ने साथ दिया।
वाराणसी की विदुषी सुचरिता गुप्ता ने उपशास्त्रीय गायन में देशभक्ति पर आधारित कजरी, दादरा की प्रभावपूर्ण प्रस्तुति दी। उन्होंने राग-‘मिश्र पीलू’ में दादरा-‘अपने हाथे चरखा चलउबै, हमार कोऊ का करिहैं, गाँधी बाबा के लगन लगउबै, कजरी -‘सबकर नैया जाला कासी हो बिसेसर रामा, नागर नैया जाला कालेपनिया रे हरी’ सुनाई। विख्यात गायिका विदुषी सविता देवी की शिष्या विदुषी सुचरिता गुप्ता ने समारोह में खड़ी कजरी भी सुनाई-‘जल्दी से चुनरिया कर तैयार रंगरेजवा, बहुत दिनों से लागल जिया हमार रंगरेजवा’। तबले पर उनके साथ श्री ठाकुर प्रसाद मिश्र, हारमोनियम पर श्री दीपक चौबे और सारंगी पर श्री ज़ीशान ने संगत की।
संगीत उत्सव में लखनऊ के तबला वादक पंडित रविनाथ मिश्र, कथक नृत्यांगना डॉ0 मनीषा मिश्रा, शास्त्रीय गायक श्री प्रवीण कश्यप एवं अन्य कलाकारों द्वारा गानवृंद प्रस्तुत किया गया। प्रवीण कश्यप द्वारा आरंभ में राग ‘मेघ’ में बंदिश-‘भारत देश महान, हम सबका अभिमान’ का गायन किया गया जो एकताल में थी। तदनंतर उन्होंने इसी राग में तीन ताल में ‘आओ मिल के मनाएं उत्सव, ये है आज़ादी का महाउत्सव’ सुनाया। गानवृंद की अंतिम प्रस्तुति में डॉक्टर मनीषा मिश्रा द्वारा कथक के पारंपरिक पक्षों एवं अभिनय के माध्यम से देशभक्ति के भावों का प्रदर्शन किया गया। तबले पर श्री आराध्य प्रवीण, हारमोनियम पर श्री धनंजय तथा तानपुरा एवं कोरस में श्री नीतेश पाल सिंह तथा स्वरमंडल एवं कोरस में श्री शैलेश ने साथ दिया।

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