नई दिल्ली, भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं और प्रधानमंत्रियों में से के अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को गुजरे हुए पांच साल हो गए हैं। वह पिछले कई सैलून से कई गंभीर बीमारियों से लड़ रहे थे और आखिरकार 16 अगस्त 2018 को उनका स्वर्गवास हो गया।
आज भी देश उन्हें एक सफल प्रधानमंत्री, ओजस्वी वक्ता, मार्मिक साहित्यकार और उससे भी ज्यादा एक बेहतरीन इंसान के तौर पर याद करते हैं। वर्षों पहले लोकसभा सत्रों और चुनावी रैलियों में उनके द्वारा दिए गए भाषण आज भी सार्थक नजर आते हैं। उनके लिए देश सर्वोच्च था। वह देश के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते थे। देश के आम नागरिकों में उनके प्राण बसते थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है तो हम इस लेख में उनसे जुड़े कुछ किस्से और कहानियां साझा करेंगे।
साल 1999 में देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे तो पाकिस्तान की कमान नवाज शरीफ के हाथों में थी। पीएम बनते ही अटल जी चाहते थे कि अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य किए जाएं। इसकी पहल के लिए उन्होंने अमृतसर से लाहौर के बीच बस सेवा शुरू की थी। वह खुद भी इसी बस से पाकिस्तान पहुंचे, जहां अटल बिहारी वाजपेयी का जोरदार स्वागत हुआ। स्वागत के बाद मीडिया के साथ एक संवाद रखा गया था। यहां कुछ ऐसा हुआ जिसे सुनकर और पढ़कर आज भी लोग हैरान हो जाते जाते हैं। दरअसल आजीवन अविवाहित रहे अटल जी को यहां एक महिला पत्रकार ने शादी का प्रस्ताव दे दिया। इसके साथ ही उस पत्रकार ने मुंह दिखाई में कश्मीर भी मांग लिया।
दरअसल में हुआ कुछ यूं कि पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने प्रेस कांफ्रेंस में उनसे शादी का प्रस्ताव रख दिया और मुंह दिखाई की रस्म अदायगी में कश्मीर मांग लिया। पत्रकार के इस प्रस्ताव से पूरे हॉल में सन्नाटा पसार गया। वहां मौजूद अन्य पत्रकार और लोगों को लगा कि यह कुछ ऐसा हो गया जो नहीं होना चाहिए था। वहां मौजूद पाक अधिकारी और राजनेता भी सकते में थे। सभी को लगा कि इस तरह से उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री को नाराज कर दिया है। लेकिन हुआ इसका कुछ उल्टा। पत्रकार के प्रस्ताव के जवाब में पूर्व पीएम ने पाकिस्तान की महिला पत्रकार से ही दहेज के रूप में पूरा पाकिस्तान मांग लिया। अटल जी के इस जवाब के बाद ठहाकों की गूंज के बीच
अटल बिहारी वाजपेयी ने जीवन पर्यंत तक कांग्रेस के विरोध की राजनीति की थी। लेकिन उस वक्त की राजनीतिक लड़ाई विचारों और विचारधारा की होती थी। सभी नेता एक-दूसरे का सम्मान करते थे। एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ होते थे। कुछ ऐसा ही हुआ था अटलजी के साथ। दरअसल 80 के दशक में अटलजी को कैंसर समेत कई अन्य बीमारियों के बारे में पता चला। उन्होंने इसकी जानकारी कुछ लोगों को ही दी। भारत में उस समय इन बीमारियों का ईलाज संभव नहीं था। अटलजी की बीमारी को उनके करीबियों तक को नहीं मालूम था, लेकिन किसी तरह यह बात उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मालूम हो गई। बता दें कि अटलजी को डॉक्टरों ने अमेरिका जाकर ईलाज कराने को कहा था लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे, जो वह यह करा सकें।
अटल बिहारी ने खुद इस बात जिक्र करते हुए कहा था कि राजीव गांधी को जैसे ही मेरी बीमारी के बारे में पता लगा वैसे ही उन्होंने मुझे अमेरिका जाने की सलाह दी। राजीव गांधी ने उन्हें अपने कार्यालय में बुलाया और उन्हें संयुक्त राष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं। यह फैसला लिया जा चुका है। अटल सदस्य के रूप में वहां जाएंगे। साथ ही उम्मीद भी जाहिर की कि अटल इस मौके का इस्तेमाल अपना इलाज कराने के लिए करेंगे। फिर अटल न्यूयॉर्क गए और जबतक उनका ईलाज पूरा नहीं हुआ वह वहीं रहे। बता दें कि 1988 में जब कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधिमंडल में विपक्षी दल के सदस्य को जगह दी थी तब इस बात ने खूब सुर्खियां बनाई थीं। हालांकि इस बात का किसी को भी अंदाजा नहीं था कि अटलजी को किसलिए इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया था। इस बात का जिक्र राजीव गांधी ने भी जीवनभर किसी से नहीं किया। उनकी मौत के बाद खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने इस राज से पर्दा उठाया था।
अटल जी की इस आलोचना के बाद मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देना चाहा और इसकी पेशकश उन्होंने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के सामने कर दी। उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें मालूम हुआ कि वह अटलजी की आलोचना से आहत हैं और इसीलिए यह कदम उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री राव ने तुरंत ही अटलजी को फोन लगाया और पूरा मामला बताया। इसके बाद अटलजी ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि उनकी आलोचना राजनीतिक थी। वह उनका बेहद सम्मान करते हैं और उनकी आलोचना को व्यक्तिगत नहीं लेना चाहिए। इसके बाद ही मनमोहन सिंह माने और इस्तीफा देने से पीछे हट गए।