बैटरी ऐसी जो चलेगी पूरे जो 28 हजार साल तक, जानिए कब से पब्लिक के लिए रहेगी उपलब्ध

नई दिल्ली, हमारी जिंदगी बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पंखे से लेकर टीवी तक मोबाइल से लेकर घड़ी तक, एयरोप्लेन से लेकर अंतरीक्षयान तक, सबकुछ बिजली पर ही आश्रित ह। बिजली के बिना हमारी जिंदगी आसान हो गयी है।

बिजली कई तरीकों से बनाई जाती है। हवा की मदद से ,पानी की मदद से ,कोयले की मदद से भी बिजली बनाते हैं।

बिजली को संरक्षित रखने के लिए विज्ञान में बैटरी को का निर्माण किया है

बिजली को संरक्षित रखने के लिए विज्ञान में बैटरी को का निर्माण किया है जो हमें बार-बार चार्ज करना पड़ता है। अगर चार्ज नहीं करेंगे तो फिर हमार डिवाइस काम करना बंद कर देगा। देखा जाए तो हमारी जिंदगी की बैटरी पर निर्भरता काफी बढ़ गई। अगर आज हम आपको एक ऐसी बैटरी के बारे में बताएंगे जो 28 हजार साल तक चलेगी। तो कैसा लगेगा।

जी हाँ ये पूरी तरह से सच है। अमेरिका के कैलीफोर्निया स्थि। कंपनी का दावा है कि वो ऐसी बैटरी बनाने जा रही है जो 28 हजार सालों तक चलेगी। इस बैटरी का नाम ‘डायमंड बैटरी ‘है जो परमाणु कचरे से बनी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में बैटरी नैनो डायमंड बैटरी (NDP) पर काम करेगी। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक , डायमंड-आधारित अल्फा, बीटा और न्यूट्रॉन वोल्टाइक बैटरी होती है जो अपने पूरे लाइफ स्पैन में इस्तेमाल होने के दौरान परंपरागत केमिकल बैटरी से अलग ग्रीन एनर्जी देगा।

NDB क्या है?

एनडीबी एक नया तकनीक है जो न्यूक्लियर जेंडर की तरह काम करता है। रेडियोधर्मी क्षय ऊर्जा को ऊर्जा में परिवर्तित करके इसके दीर्घकालिक गुणों और दीर्घायु को सुनिश्चित किया जाता है। यह बैटरी खुद को चार्ज कर लेता है। सेल्फ प्रोसेस के कारण28 हजार साल तक चल सकती है । इस सेल्फ चार्जिंग प्रोसेस के लिए बैटरी को सिर्फ प्राकृतिक हवा की जरूरत होती है

कैसे बनती है ये बैट्री

परमाणु कचरे से ये डायमंड बैटरियों को बनाई जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में अभी 3 लाख टन से ज्यादा का परमाणु कचरा मौजूद है. ऐसे में परमाणु रिएक्टर से निकले रेडियोधर्मी ग्रेफाइट घटकों को गर्म करके इन बैटरियों को बनाया जाता है। आर्टिफिशियल हीरों का इस्तेमाल हर तरह के बैट्रियों में किया जा सकता है।

कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, इन बैट्रियों को मोबाइल, टीवी, स्मार्ट वाच के अलावा अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी किया जा सकता है। आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेट और सैटेलाइट में भी इन बैट्रियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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