वॉशिंगटन, अमेरिका ने पहली बार भारत को यूएस-301 रिपोर्ट के तहत प्रॉपर्टी राइट ब्लैकलिस्ट में डाला है और अब माना जा रहा है, कि भारत पर अमेरिका जल्द ही प्रतिबंध भी लगा सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने इंटलेक्च्वल प्रॉपर्टी राइट्स में सही एक्शन नहीं लेने की वजह से चीन और रूस के साथ भारत को भी ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है। भारत के लिए ये काफी बड़ा झटका है, क्योंकि भारत को पहली बार ब्लैकलिस्ट किया गया है। हालांकि, इस सूची में जिन चीन और रूस जैसे देश पहले से ही थे, लेकिन भारत को इस लिस्ट में डालने चौंकाने वाला है, और सवाल उठ रहे हैं, कि क्या यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की बात नहीं मानने के लिए भारत को ये सजा दी गई है और क्या भारत के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाईयों की ये शुरूआत है।
दरअसल, अमेरिका बौद्धिक संपदाओं के गलत इस्तेमाल को लेकर पहले से चीन और रूस जैसे देशों से नाराज रहता था और अमेरिका का कहना था, कि अमेरिकी कंपनियों की टेक्नोलॉजी और प्रोडक्ट्स का ये देश कॉपी करते रहते हैं, जिससे अमेरिकन कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान होता है। अमेरिका ने कहा है कि, भारत के खिलाफ ये कार्रवाई अमेरिकन कंपनियों की शिकायत के बात की गई है। लिहाजा अमेरिका के लिए ये मुद्दा काफी ज्यादा गंभीर है और अमेरिका का कहना है कि, उनके देश की, या उनके देश की कंपनियों के उत्पादों का इन देशों में नकल बना लिया जाता है और फिर उसे बाजार में बेच दिया जाता है। इसमें कोई शक भी नहीं है, कि चीन, भारत और रूस जैसे देशों में अमेरिकी कंपनियों की कॉपीराइट और ट्रेडमार्क की चोरी होती है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘नकली और पायरेटेड सामानों के लिए चीन सबसे बड़ी मूल अर्थव्यवस्था बना हुआ है’।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि की “प्राथमिकता निगरानी सूची” के कार्यालय में अर्जेंटीना, चिली, भारत, इंडोनेशिया और वेनेजुएला पहले से ही थे, लेकिन अब इन्हें ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया है। लेकिन, सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि, अमेरिका ने इस साल यूक्रेन को अपनी ब्लैकलिस्ट से बाहर कर दिया है। अमेरिका का कहना है कि, चूंकी इस साल रूस ने यूक्रेन पर हमला किया हुआ है और यूक्रेन मुसीबत में है, इसीलिए यूक्रेन को ब्लैकलिस्ट से बाहर कर दिया गया है। वहीं, अमेरिकी व्यापार कार्यालय ने नकली और पायरेटेड सामानों पर अपनी कार्रवाई, इंटलेक्च्वल प्रॉपर्टी राइट्स प्रवर्तन अदालतों और अन्य कदमों का हवाला देते हुए सऊदी अरब को अपनी प्राथमिकता निगरानी सूची से हटा दिया है। माना जा रहा है, कि अमेरिका तेल के मुद्दे पर सऊदी अरब से संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है, और इसीलिए सऊदी अरब को लिस्ट से बाहर किया गया है। बुधवार को जारी की गई सूची को तैयार करने के लिए, अमेरिकी व्यापार कार्यालय ने 100 से ज्यादा अमेरिकी व्यापारिक भागीदारों के प्रदर्शन की समीक्षा की।
अमेरिका का कहना है कि, हम भारत के साथ कई सालों से इस मुद्दे पर बात कर रहे थे, लेकिन भारत ने इस दिशा में काम नहीं किया। अमेरिकी ट्रेड रिप्रजेंटेटिव कैथरीन ताई ने कहा कि, यह रिपोर्ट उन देशों की पहचान करती है, जिन्होंने अपने वादे को पूरा नहीं किया और बाइडेन प्रशासन उन दिशा में काम कर रहा है, जिसके तहत हम हर व्यापारिक भागीदारों के लिए एक समान अवसर पैदा कर सकें, ताकि उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े। अमेरिका की प्राथमिकता लिस्ट में इन सात देशों के अलावा 20 और देशों को वाच लिस्ट में डाला गया है, जिसका मतलब ये है, कि उन देशों की अब निगरानी की जाएगी।
भारत को इंटलेक्च्वल प्रॉपर्टी राइट्स में ब्लैकलिस्ट करने का साफ मतलब है, कि अमेरिका मौजूदा वक्त में यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत के रूख से नाराज है और आने वाले वक्त में अमेरिका अब भारत पर प्रतिबंध भी लगा सकता है। यूएस-301 रिपोर्ट अमेरिका हर साल प्रकाशित करता है और भारत अभी तक इस लिस्ट में कई सालों से शामिल नहीं हुआ था। यूएस ट्रेड रिप्रजेंटेटिव ऑफिस ने अनुमान लगाया है, कि अमेरिकन कंपनियों के नकली सामानों की बिक्री की वजह से अमेरिका को 250 अरब डॉलर से 600 अरब डॉलर तक का नुकसान सिर्फ चीन में हो सकता है। यानि, अगर इस अनुमान में भारत और रूस को शामिल कर लिया जाए, तो ये आंकड़ा 1000 अरब डॉलर को भी पार कर जाएजा। लिहाजा, अमेरिका ने इसे काफी गंभीर मुद्दा माना है।
यूएस-301 रिपोर्ट में भारत को शामिल करने को लेकर कई अमेरिकन पत्रकारों का कहना है कि, भारत को यूक्रेन युद्ध में रूस की आलोचना नहीं करने और अमेरिका के साथ खुलकर खड़ा नहीं होने के लिए सजा दी गई है। हालांकि, इसमें कितनी सच्चाई है, इसको लेकर फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन बात ये भी है, कि अमेरिका पिछले कई सालों से भारत को नकली सामानों का निर्माण रोकने की अनुरोध कर रहा था, लेकिन भारत में इसको लेकर कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन, ये काफी अजीब है, कि भारत को चीन और रूस के साथ इस लिस्ट में डाला है, लिहाजा इसे काफी सख्त संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।