प्रचार थमा, 11 जिलों की 58 सीटों पर 10 फरवरी को होगा मतदान, जानिए किस ज़िले से कौन मारेगा बाज़ी

लखनऊ, उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 के चुनावी महासमर में बृहस्पतिवार को पहले चरण का मतदान होगा । जिन 11 जिलों की 58 सीटों पर 10 फरवरी को मतदान होना है, वहां प्रचार थम गया। अब जनता के फैसले की बारी है।

सपा आरएलडी गठबंधन सहित सभी दलों ने पूरा जोर लगाया। हर दांवपेच आजमाया। सियासी दलों को, उम्मीदवारों को अपने-अपने समीकरणों पर एतबार है। उनकी बातों का, वादों का, इरादों का कितना रंग चढ़ा, अब इन सबके इम्तिहान की बारी है। मतदाता किसी अगर-मगर में नहीं। उसने मन बना लिया है। फैसला लिखा जा चुका है। बस सुनाना बाकी है।

58 सीटों पर निर्दलीयों समेत 623 उम्मीदवार मैदान में हैं। हर सीट पर मुकाबला दिलचस्प है। क्योंकि, भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन की ओर से खूब हुंकार भरी गई। खूब तीखी बयानबाजी हुई। इस सबके बीच कभी ये पलड़ा, तो कभी वो पलड़ा भारी दिखा। वहीं, इन अन्य दलों के मतदाता खामोशी से सारी चालों पर नजर रखे हुए थे। ये खामोश मतदाता उलटफेर कर सकते हैं।

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शामली जिले की तीन विधानसभा सीटों में से सबसे हॉट कैराना रही है। कैराना के पलायन का मुद्दा अन्य सीटों पर भी असर दिखा सकता है। बहरहाल, भाजपा ने फिर से मृगांका सिंह को मैदान में उतारा, तो सपा ने भी विधायक नाहिद हसन पर ही दांव लगाया है। पूर्व सांसद बाबू हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका इस बार यहां सारे समीकरणों पर काम किया है। वहीं, मुस्लिम बहुल सीट होने के कारण सपा-रालोद ने यहां मुस्लिम और जाट कार्ड खेला। हालांकि, कांग्रेस ने मो. अखलाक को टिकट देकर मुस्लिम वोटों में सेध लगाने की कोशिश की है। बसपा ने यहां से राजेंद्र उपाध्याय को टिकट दिया है। गन्ना मंत्री सुरेश राणा की सीट होने के कारण थानाभवन पर भी सबकी नजर है। भाजपा ने यहां से सुरेश राणा को ही फिर से टिकट दिया है, तो रालोद के अशरफ अली ने भी खूब ताल ठोकी। मुकाबला सीधा है और दोनों पक्ष ध्रुवीकरण की तलाश में हैं। शामली में वैसे मुकाबला भाजपा बनाम रालोद साफ नजर आ रहा है। हालांकि, बाकी दलों को भी हल्के में लेना भूल होगी।

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मुजफ्फरनगर इस बार भी ध्रुवीकरण कराता दिख रहा है। यह अलग सवाल है कि इसका असर किस हद तक हुआ। चाहे दंगे का जिक्र हो या किसान आंदोलन का, गन्ने का मुद्दा हो या फिर सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था का, मुजफ्फरनगर के दंगल में सारे प्रयोग किए जा चुके हैं। सदर में भाजपा और रालोद ने पूरी ताकत झोंकी है। बुढ़ाना, चरथावल, पुरकाजी में कड़े मुकाबले हो रहे हैं। सपा-रालोद गठबंधन ने यहां गन्ना भुगतान और कृषि कानून को मुद्दा बनाया। वहीं, भाजपा ने यहां सुरक्षा का बार-बार जिक्र किया। दंगों की तपिश की बार-बार याद दिलाई। सदर सीट पर मौजूदा विधायक कपिलदेव अग्रवाल अपने पारंपरिक वोटों के सहारे चुनावी मैदान में हैं। सुरक्षा आदि मुद्दे पर बात कर रहे हैें रालोद ने सौरभ स्वरूप को टिकट दिया है। बसपा ने पिछड़ों पर दांव लगाते हुए पुष्पांकर पाल को चुनावी मैदान में उतार दिया। इसी तरह से मीरापुर सीट पर भी भाजपा से प्रशांत कुमार गुर्जर और रालोद से चंदन चौहान पर दांव लगाया गया है।

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नोएडा से भाजपा से पंकज सिंह चुनावी मैदान में हैं, तो गठबंधन ने सुनील चौधरी पर दांव लगाया है। मुकाबला यहां भी जोरदार है। हालांकि, बसपा के मनवीर भाटी को कम आंकना गलत होगा। जेवर सीट पर भाजपा ने धीरेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। उधर, मीरापुर में भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना ने इस बार सपा-रालोद गठबंधन से ताल ठोकी है। ऐसे में यहां भी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। यहां बसपा से नरेंद्र भाटी मैदान में हैं।

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मेरठ की कई सीटें इस बार प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई हैं। सिवालखास सीट पर जिस तरह सै रालोद में टिकट को लेकर विरोध हुआ, रूठना-मनाना चला, उससे इस सीट पर सबकी नजरें हंै। यहां भाजपा के मनिंदरपाल और गठबंधन के गुलाम मोहम्मद के बीच तगड़ी टक्कर है। सरधना सीट भाजपा के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम की वजह से हॉट है। मुकाबले में सपा के अतुल प्रधान हैं और इस बार पूरी मजबूती से ताल ठोक रहे हैं। मुकाबला यहां भी सीधा ही नजर आ रहा है। हस्तिनापुर अपने मिथकों को तोड़ पाएगा या नहीं, इसको लेकर सबकी नजर है। किठौर, कैंट, शहर और मेरठ दक्षिण में भी इस बार किसी की राह आसान नहीं है। मेरठ में भाजपा ने जहां अति पिछड़ों, ब्राह्मण, त्यागी, वैश्य के समीकरण बनाए, तो वहीं गठबंधन ने मुस्लिम और जाटों पर डोरे डाले। हालांकि, भाजपा भी यह मान रही है कि जाट उनकी तरफ भी हैं। बसपा ने अपने दलित मतदाताओं के अलावा उनपर भी भरोसा जताया, जो उसकी सोशल इंजीनियरिंग में आते हैं।

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बागपत में ऊंट किस करवट बैठेगा, इस पर भी सबकी निगाहें लगी हुई हैं। रालोद का अभेद्य दुर्ग कहे जाने वाले छपरौली में मुकाबला कड़ा है। बागपत सीट पर पूर्व मंत्री स्व. कोकब हमीद के पुत्र अहमद हमीद रालोद से चुनावी मैदान में हैं, तो भाजपा से विधायक योगेश धामा। यहां मुकाबला बेहद टक्कर का है। इसी तरह से बड़ौत में भाजपा से विधायक केपी मलिक मैदान में हैं, तो टक्कर पर रालोद से जयवीर सिंह तोमर। जयवीर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं और दोनों के ही बीच तगड़ा मुकाबला है। जाटों के अलावा मुस्लिम, यादव व अन्य का समीकरण बनाने की गठबंधन ने पूरी कोशिश की। वहीं, भाजपा ने बागपत की तीनों सीटों के लिए अलग-अलग समीकरण बनाए। बड़ौत में अति पिछड़ों के अलावा वैश्य मतदाताओं पर उसकी नजर रही है। चूंकि, यहां भाजपा के प्रत्याशी भी जाट हैं तो उनकी तगड़ी पकड़ इन वोटरों पर भी रही है। इसी तरह से बागपत में योगेश धामा के भी जाट होने के चलते जाटों में तगड़ी सेंध लगा रहे हैं। हालांकि, यहां गठबंधन मुस्लिम, जाट तथा यादवों के सहारे चुनावी रण में है। गुर्जरों पर भी सबकी नजर रही है। भाजपा इन्हें अपने खेमे में गिन रही है, तो गठबंधन अपने में।

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गाजियाबाद में भी मुकाबला दिलचस्प है। लोनी में सपा-रालोद से पुराने दिग्गज मदन भैया मैदान में उतर गए, तो भाजपा से विधायक नंद किशोर गुर्जर मैदान में हैं। बसपा ने अय्यूब खान को उतारकर मुकाबले को रोमांचक बना दिया है, क्योंकि इस सीट पर बड़ी आबादी मुस्लिमों की है। मोदीनगर में भाजपा के अजित पाल त्यागी और रालोद से पूर्व विधायक सुदेश शर्मा मैदान में हैं। उधर बसपा ने पूनम गर्ग पर दांव लगाया है। हापुड़ की धौलाना सीट पर पिछली बार बसपा के असलम अली चुनाव जीते थे पर इस बार वह इसी सीट से सपा रलोद गठबंधन से चुनावी मैदान में कूदे हैं। उधर, भाजपा ने भी टिकट बदला ओर धर्मेश तोमर को मैदान में उतारा। यहां मुकाबला सीधा है, पर बसपा भी यहां तगड़ी सेंध लगा रही है।

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बुलंदशहर के स्याना की बात करें तो यहां भाजपा ने लोधी वोटों को देखते हुए ही देवेंद्र लोधी पर दांव लगाया, तो गठबंधन ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए दिलनवाज खान को टिकट दिया। बसपा और कांग्रेस ने यहां ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए क्रमश: सुनील भारद्वाज और पूनम पंडित को टिकट दिया है। इसी तरह से भाजपा ने शिकारपुर पर ब्राह्मण कार्ड खेला है।

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आगरा में भाजपा की पूरी लहर चली। विधायक से लेकर निकायों तक के पदाधिकारी भाजपा के चुने गए। इस बार मुकाबला तगड़ा है। चाहे एत्मादपुर हो या आगरा कैंट, दोनों में ही तगड़ी टक्कर है। आगरा दक्षिण से योगेंद्र उपाध्याय और गठबंधन से ज्ञानेंद्र उपाध्याय मैदान में हैं, तो बसपा ने ब्राह्मण पर दांव लगाते हुए रवि भारद्वाज को टिकट दिया है। आगरा ग्रामीण से बेबीरानी मौर्य को भाजपा ने चुनावी रण में उतारा है, तो गठबंधन ने महेश जाटव को। इसी तरह से फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़, फतेहाबाद बाह में भी मुकाबला जोरदार है। दलितों का काफी वोट होने के कारण आगरा में बसपा भी बेहद मजबूती से चुनाव लड़ रही है। मायावती खुद यहां सम्मेलन कर चुकी हैं और बसपा के सभी उम्मीदवार यहां बेहद मजबूती से चुनावी रण में हैं। अलीगढ़ में भाजपा ने मुक्ता राज को मैदान में उतारा है तो गठबंधन ने जफर आलम को। बसपा ने रजिया खान को टिकट दिया है। अलीगढ़ की सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या होने के कारण मुकाबले तगड़े और दिलचस्प हो गए हैं।

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मथुरा की मांट सीट इस चुनाव में खूब चर्चा का विषय रही। आठ बार के विधायक और दिग्गज श्यामसुंदर शर्मा यहां फिर से बसपा से चुनावी रण में हैं। उधर, गठबंधन ने संजय लाठर को टिकट दिया है। दरअसल, यहां भी गठबंधन के टिकट पर रार रही और पहले टिकट योगेश को दे दिया गया। बाद में संजय लाठर ने यहां से अपना दावा किया तो टिकट बदल दिया गया। भाजपा ने यहां से राजेश चौधरी को मैदान में उतारा है। इसी तरह से बलदेव, गोवर्धन और मथुरा में भी मुकाबला रोचक है।

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